मधुकर को मधुबनहिं गयौ।
काकै कहै सँदेसौ ल्याए, किन लिखि लेख दयौ।।
को वसुदेव देवकीनंदन, को जदुबंस उजागर।
ह्याँ तिनसौ पहिचानि न काहू, फिरि लै जैयै कागर।।
गोपीनाथ राधिका बल्लभ, जसुमति कुँअर कन्हाई।
दिन प्रति लेत दान बृंदाबन, दूनी रीति चलाई।।
मधुकर तुम हौ चतुर सयाने, कहत और की और।
‘सूर’ सपथ काहू बहकायौ, कै भूलै वह ठौर।।3859।।