मधुकर काके मीत भए।
त्यागे फिरत सकल कुसुमावलि, मालति भुरै लए।।
छिनु के बिछुरै कमल रति मानी, केतिक कत बिंधए।
छाँड़ि जु देह नेह नहिं जान्यौ लै गुन प्रगट नए।।
नूतन कदँब, तमाल, वकुल, बट परसत जनम गए।
भुज भरि नलिनि उड़त उदास होइ, गत स्वारथ समए।।
भटकत फिरत पात द्रुम बेलिनि, कुसुमाकर रमए।
‘सूर’ विमुख पदअंबुज छाँडै, विषयनि बिबर छए।। 3506।।