मधुकर कहियौ सुचित सँदेसौ।
समय पाइ समुझाइ स्याम सौ, हम जिय बहुत अँदेसौ।।
एक बार रस रास हमारे, मन मुरली जो हरे सौ।
तब उन बेनु वजाइ बुलाई, अब निरगुन उपदेसौ।।
और बार उन जोग जुगुति कौ, भेद न कह्यौ परै सी।
तब पतिव्रत तुम करन कहत, अब उधरौ ज्ञान गढ़े सी।।
और कहाँ लो हम कहै ऊधौ, अबलनि कौ दुख ऐसौ।
‘सूरदास’ इन पर हम मरियत, कुबिजा के बस केसौ।।4076।।