मधुकर कहा प्रवीन सयाने -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


मधुकर कहा प्रवीन सयाने।
जानत तीनि लोक की महिमा, अवलनि काज अयाने।।
जे कच कनक कटोरा भरि भरि, मेलत तेल फुलेल।
तित केसनि क्यौ भस्म चढ़ावत, होरी कैसे खेल।।
जित केसनि कुबरी गुहि सुंदर, अपनै हाथ बनाई।
तिनकौ जटा कहा नीकी हैं, कछु कैसै कहि आई।।
जिन स्रवननि ताटंक खुभी, औ करनफूल खुटलाऊ।
तिन स्रवननि कसमीरी मुद्रा, लै लै चित्र झुलाऊ।।
भाल तिलक, काजर चख, नासा नकबेसरि नथ फूली।
ते सब तजि हमरे मुख मेलत, उज्ज्वल भस्मी खूली।।
जिहिं मुख गीत सुभाषित गावतिं, करति जु हास बिलास।
तिहिं मुख मौन गहे क्यौ जीजै, घूँघट ऊरध स्वास।।
कंठ सुमाल हार मुकता के हीरा रतन अपार।
ताही कंठ बाँधिये कारन सिंगी जोग सिंगार।
कंचुकि झीनि झीनि पट सारी, चंदन सरस सछंद।
अब कथा एकै अति गुदरी, क्यौ उपजी मतिमंद।।
ऊधौ उठौ सबै पा लागै, देख्यौ ज्ञान तुम्हारौ।
‘सूर’ सु प्रभु मुख फेरि देखिहै, चिरजियौ कान्ह हमारौ।।3815।।

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