मद्रराज शल्य का अद्भुत पराक्रम

महाभारत शल्य पर्व के अंतर्गत तेरहवें अध्याय में संजय ने मद्रराज शल्य द्वारा युद्ध में किए गए अद्भुत पराक्रम का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

मद्रराज शल्य का अद्भुत पराक्रम

संजय कहते हैं- आर्य! जब मद्रराज शल्य धर्मराज युधिष्ठिर को पीड़ा देने लगे, तब सात्यकि, भीमसेन और माद्रीपुत्र पाण्डव नकुल-सहदेव ने युद्धस्थल में शल्य को रथों द्वारा घेरकर उन्हें पीड़ा देना प्रारम्भ किया। अकेले शल्य को अनेक महारथियों द्वारा पीड़ित होते देख उनको सब ओर से महान साधुवाद प्राप्त होने लगा। वहाँ एकत्र हुए सिद्ध और महर्षि भी हर्ष में भरकर बोल उठे- आश्चर्य है। भीमसेन ने रणभूमि में अपने पराक्रम के लिये कष्टरूप शल्य को पहले एक बाण से घायल करके फिर सात बाणों से बींध डाला। सात्यकि भी धर्मपुत्र युधिष्ठिर की रक्षा के लिये मद्रराज को सौ बाणों से आच्छादित करके सिंह के समान दहाड़ने लगे। नकुल और सहदेव ने पांच-पांच बाणों से शल्य को घायल करके फिर सात बाणों से उन्हें तुरन्त ही बींध डाला।

माननीय नरेश! समरांगण में शूरवीर शल्य ने उन महारथियों द्वारा पीड़ित होने पर भी विजय के लिये यत्नशील हो भार सहन करने में समर्थ और शत्रु के वेग का नाश करने वाले एक भयंकर धनुष को खींचकर सात्यकि को पच्चीस, भीमसेन को सत्तर और नकुल को सात बाण मारे। तत्पश्चात समरभूमि में एक भल्ल के द्वारा धनुर्धर सहदेव के बाण सहित धनुष को काटकर शल्य ने उन्हें इक्कीस बाणों से घायल कर दिया। तब सहदेव ने संग्राम में दूसरे धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाकर अपने अत्यन्त तेजस्वी मामा को विषधर सर्पों के समान भयंकर और जलती हुई आग के समान प्रज्वलित पांच बाणों द्वारा घायल कर दिया। साथ ही अत्यन्त कुपित होकर उन्होंने झुकी हुई गांठ वाले बाण से उनके सारथि को भी पीट दिया और उन्हें भी पुनः तीन बाणों से घायल कर दिया। तत्पश्चात भीमसेन ने सत्तर, सात्यकि ने नौ और धर्मराज युधिष्ठिर ने साठ बाणों से शल्य के शरीर को चोट पहुँचायी। महाराज! उन महारथियों द्वारा अत्यन्त घायल कर दिये जाने पर राजा शल्य अपने अंगों से रक्त की धारा बहाने लगे, मानो पर्वत गेरू-मिश्रित जल का झरना बहा रहा हो। राजन! उन्होंने उन सभी महाधनुर्धरों को पांच-पांच बाणों से वेगपूर्वक घायल कर दिया। वह उनके द्वारा अद्भुत सा कार्य हुआ।

मान्यवर! तदनन्तर उन श्रेष्ठ महारथी शल्य ने समरांगण में एक दूसरे भल्ल के द्वारा धर्मपुत्र युधिष्ठिर के प्रत्यंचा सहित धनुष को काट डाला। तब धर्मपुत्र युधिष्ठिर ने दूसरा धनुष हाथ में लेकर, घोडे़, सारथि, ध्वज और रथसहित शल्य को अपने बाणों से आच्छादित कर दिया। समरांगण में धर्मपुत्र के बाणों से आच्छादित होते हुए शल्य ने युधिष्ठिर को दस पैने बाणों से बींध डाला। जब धर्मपुत्र युधिष्ठिर शल्य के बाणों से पीड़ित हो गये, तब क्रोध में भरे हुए सात्यकि ने शूरवीर मद्रराज पर पांच बाणों का प्रहार किया। यह देख शल्य ने एक क्षुरप्र से सात्यकि के विशाल धनुष को काट दिया और भीमसेन आदि को भी तीन-तीन बाणों से चोट पहुँचायी। महाराज! तब सत्यपराक्रमी सात्यकि ने कुपित हो शल्य पर सुवर्णमय दण्ड से विभूषित एक बहुमूल्य तोमर का प्रहार किया। भीमसेन ने प्रज्वलित सर्प के समान नाराच चलाया, नकुल ने संग्रामभूमि में शल्य पर शक्ति छोड़ी, सहदेव ने सुन्दर गदा चलायी और धर्मराज युधिष्ठिर ने रणक्षेत्र में शल्य को मार डालने की इच्छा से उन पर शतघ्नी का प्रहार किया। परंतु मद्रराज शल्य ने समरांगण में अपने शस्त्रसमूहों द्वारा उन पाँचों वीरों के हाथों से छूटे हुए उक्त सभी अस्त्रों का शीघ्र ही निवारण कर दिया।[1]

सिद्धहस्त एवं प्रतापी वीर शल्य ने अपने भल्लों द्वारा सात्यकि के चलाये हुए तोमर के टुकडे़-टुकडे़ कर डाले और भीमसेन के छोडे़ हुए सुवर्णभूषित बाण के दो खण्ड कर डाले। इसी प्रकार उन्होंने नकुल की चलायी हुई स्वर्ण-दण्ड विभूषित भयंकर शक्ति का तथा सहदेव की फेंकी हुई गदा का भी अपने बाणसमूहों द्वारा निवारण कर दिया। भारत! फिर शल्य दो बाणों से राजा युधिष्ठिर की उस शतघ्नी को भी पाण्डवों के देखते-देखते काट डाला और सिंह के समान दहाड़ना आरम्भ किया। युद्ध में शत्रु की इस विजय को शिनिपौत्र सात्यकि नहीं सहन कर सके। उन्होंने दूसरा धनुष हाथ में लेकर क्रोध से आतुर हो दो बाणों से मद्रराज को घायल करके तीन से उनके सारथि को भी बींध डाला। राजन! तब राजा शल्य रणभूमि में अत्यन्त कुपित हो उठे और जैसे महावत अंकुशों से बड़े-बड़े़ हाथियों को चोट पहुँचाते हैं, उसी प्रकार उन्होंने उन सब योद्धाओं को दस बाणों से घायल कर दिया। समरांगण में मद्रराज शल्य के द्वारा इस प्रकार रोके जाते हुए शत्रुसुदन पाण्डव-महारथी उनके सामने ठहर न सके। उस समय राजा दुर्योधन शल्य का वह पराक्रम देखकर ऐसा समझने लगा कि अब पाण्डव, पांचाल और सृंजय अवश्य मार डाले जायँगे।

राजन! तदनन्तर प्रतापी महाबाहु भीमसेन मन से प्राणों का मोह छोड़कर मद्रराज शल्य के साथ युद्ध करने लगे। नकुल, सहदेव और महारथी सात्यकि ने भी उस समय शल्य को घेरकर उनके ऊपर चारों ओर से बाणों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। इन चार महाधनुर्धर पाण्डव पक्ष के महारथियों से घिरे हुए प्रतापी मद्रराज शल्य उन सबके साथ युद्ध कर रहे थे। राजन! उस महासमर में धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर ने एक क्षुरप्र द्वारा मद्रराज शल्य के चक्ररक्षक को शीघ्र ही मार डाला। अपने महारथी शूरवीर चक्ररक्षक के मारे जाने पर बलवान मद्रराज भी बाणों द्वारा शत्रुपक्ष के समस्त योद्धाओं को आच्छादित कर दिया। राजन! समरांगण में अपने समस्त सैनिकों को बाणों से ढका हुआ देख धर्मपुत्र युधिष्ठिर मन-ही-मन इस प्रकार चिन्ता करने लगे। इस युद्धस्थल में भगवान श्रीकृष्ण की कही हुई वह महत्त्वपूर्ण बात कैसे सिद्ध हो सकेगी? कहीं ऐसा न हो कि रणभूमि में कुपित हुए महाराज शल्य मेरी सारी सेना का संहार कर डालें। मैं, मेरे भाई, महारथी सात्यकि तथा पांचाल और सृंजय योद्धा सब मिलकर भी मद्रराज शल्य को पराजित करने में समर्थ नहीं हो रहे हैं। जान पड़ता है ये महाबली मामा आज हम लोगों का वध कर डालेंगे। फिर भगवान श्रीकृष्ण की यह बात (कि शल्य मेरे हाथ से मारे जायँगे) कैसे सिद्ध होगी? पाण्डु के बड़े भाई महाराज धृतराष्ट्र! तदनन्तर रथ, हाथी और घोड़ों सहित समस्त पाण्डवयोद्धा मद्रराज शल्य को सब ओर से पीड़ा देते हुए उन पर चढ़ आये। जैसे वायु बड़े-बड़े़ बादलों को उड़ा देती है, उसी प्रकार समरांगण में राजा शल्य ने अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से परिपूर्ण उस उमड़ी हुई शस्त्रवर्षा को छिन्न-भिन्न कर डाला।

तत्पश्चात शल्य के चलाये हुए सुनहरे पंख वाले बाणों की वर्षा आकाश में टिड्डीदलों के समान छा गयी, जिसे हमने अपनी आँखों देखा था। युद्ध के मुहाने पर मद्रराज के चलाये हुए वे बाण शलभ-समूहों के समान गिरते दिखायी देते थे। नरेश्वर! मद्रराज शल्य के धनुष से छुटे उन सुवर्णभूषित बाणों से आकाश ठसाठस भर गया था। उस महायुद्ध में बाणों द्वारा महान अन्धकार छा गया, जिससे वहाँ हमारी और पाण्डवों की कोई भी वस्तु दिखायी नहीं देती थी। बलवान मद्रराज के द्वारा शीघ्रतापूर्वक की जाने वाले उस बाण वर्षा से पाण्डवों के उस सैन्‍यसमुद्र को विचलित होते देख देवता, गन्धर्व और दानव अत्यन्त आश्चर्य में पड़ गये। मान्यवर! विजय के लिये प्रयत्न करने वाले उन समस्त योद्धाओं को सब ओर से बाणों द्वारा आच्छादित करके शल्य धर्मराज युधिष्ठिर को भी ढक्कर बारंबार सिंह के समान गर्जना करने लगे। समरांगण में उनके बाणों से आच्छादित हुए पाण्डवों के महारथी उस युद्ध में महारथी शल्य की ओर आगे बढ़ने में समर्थ न हो सके। तो भी धर्मराज को आगे रखकर भीमसेन आदि रथी संग्राम में शोभा पाने वाले शूरवीर शल्य को वहाँ छोडकर पीछे न हटे।[2]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 13 श्लोक 1-23
  2. महाभारत शल्य पर्व अध्याय 13 श्लोक 24-48

सम्बंधित लेख

महाभारत शल्य पर्व में उल्लेखित कथाएँ


शल्य और दुर्योधन वध के समाचार से धृतराष्ट्र का मूर्च्छित होना | धृतराष्ट्र को विदुर द्वारा आश्वासन देना | दुर्योधन के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप करना | धृतराष्ट्र का संजय से युद्ध का वृत्तान्त पूछना | कर्ण के मारे जाने पर पांडवों के भय से कौरव सेना का पलायन | भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदलों का वध | अर्जुन द्वारा कौरवों की रथसेना पर आक्रमण | दुर्योधन का अपने सैनिकों को समझाकर पुन: युद्ध में लगाना | कृपाचार्य का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना | दुर्योधन का कृपाचार्य को उत्तर देना | दुर्योधन का संधि स्वीकर न करके युद्ध का ही निश्चय करना | अश्वत्थामा का शल्य को सेनापति बनाने का प्रस्ताव | दुर्योधन के अनुरोध पर शल्य का सेनापति पद स्वीकार करना | शल्य के वीरोचित उद्गार | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को शल्यवध हेतु उत्साहित करना | उभयपक्ष की सेनाओं का रणभूमि में उपस्थित होना | कौरव-पांडवों की बची हुई सेनाओं की संख्या का वर्णन | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध | पांडव वीरों के भय से कौरव सेना का पलायन | नकुल द्वारा कर्ण के तीन पुत्रों का वध | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का भयानक युद्ध | शल्य का पराक्रम | कौरव-पांडव योद्धाओं के द्वन्द्वयुद्ध | भीम के द्वारा शल्य की पराजय | भीम और शल्य का भयानक गदा युद्ध | दुर्योधन द्वारा चेकितान का वध | दुर्योधन की प्रेरणा से कौरव सैनिकों का पांडव सेना से युद्ध | युधिष्ठिर और माद्रीपुत्रों के साथ शल्य का युद्ध | मद्रराज शल्य का अद्भुत पराक्रम | अर्जुन और अश्वत्थामा का युद्ध | अश्वत्थामा के द्वारा सुरथ का वध | दुर्योधन और धृष्टद्युम्न का युद्ध | शल्य के साथ नकुल और सात्यकि आदि का घोर युद्ध | पांडव सैनिकों और कौरव सैनिकों का द्वन्द्वयुद्ध | भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय | युधिष्ठिर द्वारा शल्य की पराजय | भीम द्वारा शल्य के घोड़े और सारथि का वध | युधिष्ठिर के द्वारा शल्य का वध | युधिष्ठिर के द्वारा शल्य के भाई का वध | सात्यकि और युधिष्ठिर द्वारा कृतवर्मा की पराजय | मद्रराज के अनुचरों का वध और कौरव सेना का पलायन | पांडव सैनिकों द्वारा पांडवों की प्रशंसा और धृतराष्ट्र की निन्दा | भीम द्वारा इक्कीस हज़ार पैदलों का संहार | दुर्योधन का अपनी सेना को उत्साहित करना | धृष्टद्युम्न द्वारा शाल्व के हाथी का वध | सात्यकि द्वारा शाल्व का वध | सात्यकि द्वारा क्षेमधूर्ति का वध | कृतवर्मा का सात्यकि से युद्ध तथा उसकी पराजय | दुर्योधन का पराक्रम | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घोर संग्राम | कौरव पक्ष के सात सौ रथियों का वध | उभय पक्ष की सेनाओं का मर्यादा शून्य घोर संग्राम | शकुनि का कूट युद्ध और उसकी पराजय | अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से दुर्योधन के दुराग्रह की निन्दा | अर्जुन द्वारा कौरव रथियों की सेना का संहार | अर्जुन और भीम द्वारा कौरवों की रथसेना एवं गजसेना का संहार | अश्वत्थामा आदि के द्वारा दुर्योधन की खोज | सात्यकि द्वारा संजय का पकड़ा जाना | भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध | भीम के द्वारा कौरवों की चतुरंगिणी सेना का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन के द्वारा सत्यकर्मा और सत्येषु का वध | अर्जुन के द्वारा सुशर्मा का उसके पुत्रों सहित वध | भीम के द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शन का अन्त | सहदेव के द्वारा उलूक का वध | सहदेव के द्वारा शकुनि का वध
ह्रदप्रवेश पर्व
बची हुई समस्त कौरव सेना का वध | संजय का क़ैद से छूटना | दुर्योधन का सरोवर में प्रवेश | युयुत्सु का राजमहिलाओं के साथ हस्तिनापुर में जाना
गदा पर्व
अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा की सरोवर में दुर्योधन से बातचीत | युधिष्ठिर का सेना सहित सरोवर पर जाना | कृपाचार्य आदि का सरोवर से दूर हट जाना | युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण की बातचीत | सरोवर में छिपे दुर्योधन के साथ युधिष्ठिर का संवाद | युधिष्ठिर के कहने से दुर्योधन का सरोवर से बाहर आना | दुर्योधन का किसी एक पांडव से गदायुद्ध हेतु तैयार होना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को फटकारना | श्रीकृष्ण द्वारा भीमसेन की प्रशंसा | भीम और दुर्योधन में वाग्युद्ध | बलराम का आगमन और सम्मान | भीम और दुर्योधन के युद्ध का आरम्भ | बलदेव की तीर्थयात्रा | प्रभासक्षेत्र के प्रभाव तथा चंद्रमा के शापमोचन की कथा | उदपान तीर्थ की उत्पत्ति तथा त्रित मुनि के कूप में गिरने की कथा | त्रित मुनि का यज्ञ | त्रित मुनि का अपने भाइयों का शाप देना | वैशम्पायन द्वारा विभिन्न तीर्थों का वर्णन | नैमिषारण्य तीर्थ का वर्णन | बलराम का सप्त सारस्वत तीर्थ में प्रवेश | सप्तसारस्वत तीर्थ की उत्पत्ति | मंकणक मुनि का चरित्र | औशनस एवं कपालमोचन तीर्थ की माहात्म्य कथा | रुषंगु के आश्रम पृथूदक तीथ की महिमा | आर्ष्टिषेण एवं विश्वामित्र की तपस्या तथा वरप्राप्ति | अवाकीर्ण तीर्थ की महिमा और दाल्भ्य की कथा | यायात तीर्थ की महिमा और ययाति के यज्ञ का वर्णन | वसिष्ठापवाह तीर्थ की उत्पत्ति | ऋषियों के प्रयत्न से सरस्वती नदी के शाप की निवृत्ति | सरस्वती नदी के जल की शुद्धि | अरुणासंगम में स्नान से राक्षसों और इन्द्र का संकटमोचन | कुमार कार्तिकेय का प्राकट्य | कुमार कार्तिकेय के अभिषेक की तैयारी | स्कन्द का अभिषेक | स्कन्द के महापार्षदों के नाम, रूप आदि का वर्णन | स्कन्द की मातृकाओं का परिचय | स्कन्द देव की रणयात्रा | स्कन्द द्वारा तारकासुर, महिषासुर आदि दैत्यों का सेनासहित संहार | वरुण का अभिषेक | अग्नितीर्थ, ब्रह्मयोनि और कुबेरतीर्थ की उत्पत्ति का प्रसंग | श्रुतावती और अरुन्धती के तप की कथा | इन्द्रतीर्थ, रामतीर्थ, यमुनातीर्थ और आदित्यतीर्थ की महिमा | असित देवल तथा जैगीषव्य मुनि का चरित्र | दधीच ऋषि तथा सारस्वत मुनि के चरित्र का वर्णन | वृद्ध कन्या का चरित्र | वृद्ध कन्या का शृंगवान से विवाह तथा स्वर्गगमन | ऋषियों द्वारा कुरुक्षेत्र की सीमा और महिमा का वर्णन | प्लक्षप्रस्रवण आदि तीर्थों तथा सरस्वती की महिमा | बलराम का नारद से कौरवों के विनाश का समाचार सुनना | भीम-दुर्योधन का युद्ध देखने के लिए बलराम का जाना | बलराम की सलाह से सबका कुरुक्षेत्र के समन्तपंचक तीर्थ में जाना | समन्तपंचक तीर्थ में भीम और दुर्योधन में गदायुद्ध की तैयारी | दुर्योधन के लिए अपशकुन | भीमसेन का उत्साह | भीम और दुर्योधन का वाग्युद्ध | भीम और दुर्योधन का गदा युद्ध | कृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन के संकेत से भीम द्वारा दुर्योधन की जाँघें तोड़ना | दुर्योधन के धराशायी होने पर भीषण उत्पात प्रकट होना | भीमसेन द्वारा दुर्योधन का तिरस्कार | युधिष्ठिर का भीम को अन्याय करने से रोकना | युधिष्ठिर का दुर्योधन को सान्त्वना देते हुए खेद प्रकट करना | क्रोधित बलराम को कृष्ण का समझाना | युधिष्ठिर के साथ कृष्ण और भीम की बातचीत | पांडव सैनिकों द्वारा भीम की स्तुति | कृष्ण के आक्षेप पर दुर्योधन का उत्तर | कृष्ण द्वारा पांडवों का समाधान | पांडवों का कौरव शिबिर में पहुँचना | अर्जुन के रथ का दग्ध होना | पांडवों का कृष्ण को हस्तिनापुर भेजना | कृष्ण का हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र और गांधारी को आश्वासन देना | कृष्ण का पांडवों के पास लौटना | दुर्योधन का संजय के सम्मुख विलाप | दुर्योधन का वाहकों द्वारा अपने साथियों को संदेश भेजना | दुर्योधन को देखकर अश्वत्थामा का विषाद एवं प्रतिज्ञा करना | अश्वत्थामा का सेनापति पद पर अभिषेक

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः