मदन मोहन जू के मदन मदनही मोहिनि2 -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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षोडस डाँड़ी परगहिं सुंदर हीरा रत्न लगाई हो।
मरुव मयारि पिरोजा लाल लटकै सुंदर सुठि सु ढराई हो।।
दंपति झूलत गगन हिंडोलौ ब्रज बधु देति झुलाई हो।
कंकन नूपुर कुनित कनक मय कटि किंकिनि झमकाई हो।।
वहाँ त्रिविध सीतल सुगंध मँद पवन सु गवन सुहाई हो।
बिहरत उठत सुबास जहाँ बहु उड़त मधुप गन धाई हो।।
जैसी हरी हरी भूमि हुलसावति पावस रितु सुखदाई हो।
तैसियै नान्ही नान्ही बूँद बारि बारि बरषै मेघवा मधुर गरजाई हो।।
चढ़े बिमान त्रिदस पति देखै जै-जै-धुनि नभ छाई हो।
सखि स्यामा स्याम रमत बृंदाबन सुर ललना ललचाई हो।।
सुक सारदा सेस नारदादि बिधि सिव ध्यान न पाई हो।
तिहिं देखै त्रिताप तनु नासहि ब्रज बधूनि मन भाई हो।।
झूलति जुवति मदन गुपाल सँग एक बस इकदाई हो।
'सूरदास' प्रभु कुंज बिहारी आपुन झूलि झुलाई हो।। 108 ।।

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