मथुरा निकट चरित है गाइ।
दुष्ट कंस भय करत मनहि मन, सुनै कृष्न प्रभुताइ।।
सीस धुनै नृप रिसनि, मनहि मन, बहुत उपाइ करै।
घर बैठै ही दसन अधर धरि चंपै, स्वास भरै।।
समुझै बचन कहे जे देवी, पहिलै अकास परै।
नारद गिरा सँभारी पुनि पुनि, सिर धुनि आपु सरै।।
काल रूप देवकि कौ नंदन प्रगटयौ बसुधा माहि।
कासौ कहौ 'सूर' अंतर की, सुफलक सुत को चाहि।।2925।।