मणि-वैदूर्य-सुमंडित मनहर मुकुट -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा कृष्ण जन्म महोत्सव एवं जय-गान

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राग भीमपलासी - ताल कहरवा


मणि-वैदूर्य-सुमंडित मनहर मुकुट, कर्ण कुण्डल द्युतिमान।
चमक रहे उनकी द्युति से काले घुँघराले केश अमान॥
कटि-किन्कणी, कड़े-बाजूबँद, शोभित बाहु विलक्षण-रूप।
विस्मय-हर्ष-भरे नेत्रों से निरख रहे वसुदेव अनूप॥
करने लगे स्तवन, प्रभु को पहचान, भरे मन परमानन्द।
प्रभु ने दिया पुरातन परिचय पिछले जन्मों का, सुख-कंद॥
सुन देवकी कंस-भय-भीता माता का अति करुणालाप।
बन शिशु, ‘पहुँचा दो मुझको गोकुल’-प्रभु बोले अपने-‌आप॥
स्वयं स्वरूप शक्ति योगमाया, धर अनुजा का शुचि स्वाँग।
प्रगटी गोकुल नन्द-भवन में, जननि यशोदा के बड़भाग॥
इधर खुल गये सारे ताले, सोये सब प्रहरी, खो चेत।
प्रिय शिशु को ले गोद प्यार से, चले पिता वसुदेव सचेत॥
यमुना ने, कर पद-स्पर्श, दे दिया मार्ग उनको सुखयोग।
पहुँचे नंद-भवन, देखे सब खुले द्वार, सोये सब लोग॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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