मंद सुजोति मुखारबिंद की -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


मंद सुजोति मुखारबिंद की, चकित चहूँ दिसि जोवति।
द्रुम साखा अवलंबि, बेलि गहि, नख सौं भूमि खनोवति।।
मुकुलित कच, तन धन की ओट ह्वै, अंसुवनि चोर निचोवति।
सूरदास प्रभु तजी गर्ब तैं, भई प्रेम गति गोवति।।1107।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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