मंद-मंद मुसकावत आवत -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

Prev.png
राग हमीर - तीन ताल


मंद-मंद मुसकावत आवत।
देखि दूर ही तें भ‌इ बिहवल राधा-मन आनँद न समावत॥
नव नीरद-घनस्याम-कांति कल, पीत बसन बर तन पर सोभित।
मालति-कमल-माल उर राजत, भँवर-पाँति मँडरात सुलोभित॥
सकल अंग चंदन अनुलेपित, रत्नाभरन-बिभूषित सुचि तन।
सिखा सुसोभित मोर-पिच्छ, मनि-मुकुट सुमंडित, केस कृष्न-घन॥
मुख प्रसन्न मुनि-मानस-हर मृदुहास-छटा चहुँ ओर बिखेरत।
चित्त-बित्त हर लेत निमिष महँ जा तन करि कटाच्छ दृग फेरत॥
मुरली, क्रीड़ा-कमल प्रफुल्लित लिये एक कर, दूजे दरपन।
देखि राधिका, करन लगी निज पुनः-पुनः अर्पित कौं अरपन॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः