भ-क्तछल प्रभु, नाम तुम्हारौ।
जल-संकट तै राखि लियौ गज, ग्यालनि हित गौबर्धन धारौ।
द्रुपद-सुता कौ मिट्यौ महादुख, जबहीं सो हरि टेर पुकारौ।
हौं अनाथ नाहिंन कोउ मेरौ, दुस्सासन तन करत उघारौ।
भूप अनेक बंदि तैं छोरे, राज-रवनि जस अति बिस्तारौ।
कीजै लाज नाम अपने की, जरासंध सौ असुर सँधारौ।
अंबरीष कौ साप निवारौ, दुरबासा कौं चक्र सँभारौ।
बिदुर दास कैं भोजन किन्हौं, दुरजोधन कौ मेट्यौ गारौ।
संतत दीन महा अपराधी, काहैं सूरज कूर बिसारौ ?
सो कहि नाम रह्यौ प्रभु तेरौ, बनमालौ, भगवान उधारौ।।172।।
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