भोर भयौ ब्रज लोगन कौ।
ग्वाल सखा सब व्याकुल सुनि कै, स्याम चलत है मधुबन कौ।।
सुफलकसुत स्यंदन पलनावत, देखै तहँ बल मोहन कौ।
यह सुनि घर घर तै उठि धाई, नंदसुवन मुख जोहन कौ।।
रोर परी गोकुल मैं, जहँ तहँ, गाइ फिर तिपै दोहन कौ।
'सूर' बरष कर भार सजावत, महर चले हरि गोहन कौ।।2982।।