भोगों में सुख है -इस भारी भ्रम को हर लो -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

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राग जोगिया - ताल आढ़ा चौताल


’भोगों में सुख है’-इस भारी भ्रम को हर लो, हे हरि! सत्वर।
तुरत मिटा दो दुःखद सुख की आशा‌ओं को, हे करुणाकर!॥
मधुर तुम्हारे रूप-नाम-गुण की स्मृति होती रहे निरन्तर।
देखूँ सदा, सभी में तुमको, कभी न भूलूँ तुमको पलभर॥
ममता एक तुम्हीं में हो, हो तुम में ही आसक्ति-प्रीति वर।
बँधा रहे मन प्रेमरज्जु से चारु चरण-कमलों में, नटवर!॥
दिखता रहे मधुर-मनहर मुख कोटि-कोटि शरदिन्दु-सुखाकर।
सुनूँ सदा मधुरातिमधुर मुनि-मन-‌उन्मादिनि मुरली के स्वर॥
तन-मन के प्रत्येक कार्य से पूजूँ तुम्हें सदा, हृदयेश्वर।
सहज सुहृद उदारचूड़ामणि! दीन-हीन मुझको दो यह वर॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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