भेद लियौ चाहति राधा सौं।।
बैठि रहौ अपनैं घर चुपकैं, काम कहा बाधा सौ।।
यह मन दूरि धरौ अपनौ, बड़े बोलि गई कह कीन्हौं।
कैसैं निर्भय रही सबनि सौं, भेद न काहूहि दीन्हौं।।
वह कैसैं फंग परै तुम्हारैं, वाके घात न जानौ।
सूर सबै तुम बड़ी सयानी, मोहिं नहिं तुम मानौ।।1742।।