भेडिय़ा ओढ़ भेड़ की खाल -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

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राग भीमपलासी - ताल त्रिताल

भेडिय़ा ओढ़ भेड़ की खाल।
भुलाकर खा जाता तत्काल॥
यही था मेरा जग में हाल।
कपट का फैलाया जंजाल॥
बना मैं साधु, बिरागी, भक्त।
रहा मन भोगों में अनुरक्त॥
लगाता मैं बगुला-सा ध्यान।
मूँदता आँख, रोकता प्रान॥
दृष्टि रहती मछली की ओर।
सदा रहता मैं विषय-विभोर॥
प्रेम की कहता सुन्दर बात।
जान चर्चा करता दिन-रात॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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