भूल उच्चता भगवान सब -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा के प्रेमोद्गार-श्रीकृष्ण के प्रति

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राग वागेश्री - तीन ताल


भूल उच्चता भगवात्ता सब सात्ता का सारा अधिकार।
मुझ नगण्य से मिले तुच्छ बन, स्वयं छोड़ संकोच-सँभार॥
मानो अति आतुर मिलने को, मानो हो अत्यन्त अधीर।
तत्त्वरूपता भूल सभी नेत्रों से लगे बहाने नीर॥
हो व्याकुल, भर रस अगाध, आकर शुचि रस-सरिता के तीर।
करने लगे परम अवगाहन, तोड़ सभी मर्यादा-धीर॥
बढ़ी अमित, उमड़ी रस-सरिता पावन, छायी चारों ओर।
डूबे सभी भेद उसमें, फिर रहा कहीं भी ओर न छोर॥
प्रेमी, प्रेम, परम प्रेमास्पद-नहीं जान कुछ, हु‌ए विभोर।
राधा प्यारी हूँ मैं, या हो केवल तुम प्रिय नन्दकिशोर॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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