भीम और शल्य का भयानक गदा युद्ध

महाभारत शल्य पर्व के अंतर्गत बारहवें अध्याय में संजय ने भीम और शल्य के मध्य होने वाले भयानक गदायुद्ध का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

भीम और शल्य का गदायुद्ध

संजय कहते हैं- राजन! अपने सारथि को गिरा हुआ देख मद्रराज शल्य वेगपूर्वक लोहे की गदा हाथ में लेकर पर्वत के समान अविचल भाव से खडे़ हो गये। वे प्रलयकाल की प्रज्वलित अग्नि, पाशधारी यमराज, शिखरयुक्त कैलास, वज्रधारी इन्द्र, त्रिशूलधारी रुद्र तथा जंगल के मतवाले हाथी के समान भयंकर जान पड़ते थे। भीमसेन बहुत बड़ी गदा हाथ में लेकर वेगपूर्वक उनके ऊपर टूट पड़े। फिर तो शंखनाद, सहस्रों वाद्यों का गम्भीर घोष तथा शूरवीरों का हर्ष बढ़ाने वाला सिंहनाद सब ओर होने लगा। योद्धाओं में महान गजराज के समान पराक्रमी उन दोनों वीरों को देखकर आपके और शत्रुपक्ष के योद्धा सब ओर से वाह-वाह कहकर उनके प्रति सम्मान प्रकट करने लगे। संसार में मद्रराज शल्य अथवा यदुनन्दन बलराम जी के सिवा दूसरा कोई ऐसा योद्धा नहीं है, जो युद्ध में भीमसेन का वेग सह सके। इसी प्रकार महामना मद्रराज शल्य की गदा का वेग भी रणभूमि में भीमसेन के सिवा दूसरा कोई योद्धा नहीं सह सकता। शल्य और भीमसेन दोनों वीर हाथ में गदा लिये साँड़ों की तरह गर्जते हुए चक्कर लगाने और पैंतरे देने लगे। मण्डलाकार गति से घूमने में, भाँति-भाँति के पैंतरे दिखाने की कला में तथा गदा का प्रहार करने में उन दोनों पुरुषसिंह में कोई भी अंतर नहीं दिखायी देता था, दोनों एक-से जान पड़ते थे। तपाये हुए उज्ज्वल सुवर्णमय पत्रों से जड़ी हुई शल्य की वह भयंकर गदा आग की ज्वालाओं से लिपटी हुई-सी प्रतीत होती थी। इसी प्रकार मण्डलाकार गति से विचित्र पैंतरों के साथ विचरते हुए महामनस्वी भीमसेन की गदा बिजलीसहित मेघ के समान सुशोभित होती थी।

राजन! मद्रराज ने अपनी गदा से जब भीमसेन की गदा पर चोट की, तब वह प्रज्वलित-सी हो उठी और उससे आग की लपटें निकलने लगीं। इसी प्रकार भीमसेन की गदा से ताड़ित होकर शल्य की गदा भी अंगारे बरसाने लगी। वह अद्भुत-सा दृश्य हुआ। जैसे दो विशाल हाथी दाँतों से और दो बड़े-बड़े़ साँड़ सींगों से एक दूसरे पर चोट करते हैं, उसी प्रकार अंकुशों जैसी उन श्रेष्ठ गदाओं द्वारा वे दोनों वीर एक दूसरे पर आघात करने लगे। उन दोनों के अंगों में गदा की गहरी चोटों से घाव हो गये थे। अतः दोनों ही क्षणभर में खून से नहा गये। उस समय खिले हुए दो पलाश वृक्षों के समान वे दोनों वीर देखने ही योग्य जान पड़ते थे। मद्रराज की गदा से दायें-बायें अच्छी तरह चोट खाकर भी महाबाहु भीमसेन विचलित नहीं हुए। वे पर्वत के समान अविचल भाव से खडे़ रहे। इसी प्रकार भीमसेन की गदा के वेग से बारंबार आहत होने पर भी शल्य को उसी प्रकार व्यर्था नहीं हुई, जैसे दन्तार हाथी के आघात से महान पर्वत पीड़ित नहीं होता। उस समय उन दोनों पुरुषसिंहों की गदाओं के टकराने की आवाज सम्पूर्ण दिशाओं में दो वज्रों के आघात के समान सुनायी देती थी।

महापराक्रमी भीमसेन और शल्य दोनों वीर अपनी विशाल गदाओं को ऊपर उठाये कभी पीछे लौट पड़ते, कभी मध्यम मार्ग में स्थित होते और कभी मण्डलाकार घूमने लगते थे। वे युद्ध करते-करते आठ कदम आगे बढ़ आये और लोहे के डंडे उठाकर एक दूसरे को मारने लगे। उनका पराक्रम अलौकिक था। उन दोनों में उस समय भयानक संघर्ष होने लगा। वे दोनों युद्धकला के विद्वान, एक दूसरे को कुचलते हुए मण्डलाकार विचरते और अपना-अपना विशेष कार्य कौशल प्रदर्शित करते थे। तदनन्तर वे पुनः अपनी भयंकर गदाएँ उठाकर शिखरयुक्त दो पर्वतों के समान परस्पर आघात करने और मण्डलाकार गति से विचरने लगे। युद्धविषयक का विशेष के ज्ञात वे दोनों वीर अविचलभाव से रणभूमि में डटे हुए थे। वे एक दूसरे पर क्रोधपूर्वक गदाओं का प्रहार करके अत्यन्त घायल हो गये और दो इन्द्र-ध्वजों के समान एक ही साथ पृथ्वी पर गिर पड़े। उस समय दोनों सेनाओं के वीर हाहाकार करने लगे।[1] इधर गदाधारी भीमसेन पलक मारते-मारते पुनः होश में आकर उठ खडे़ हुए विहलता के कारण मतवाले पुरुष- के समान मद्रराज को युद्ध के लिये ललकारने लगे। तब आपके सैनिक नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्र लेकर भाँति-भाँति के रणवाद्यों की गम्भीर ध्वनि के साथ पाण्डव सेना से युद्ध करने लगे।[2]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 12 श्लोक 1-25
  2. महाभारत शल्य पर्व अध्याय 12 श्लोक 26-44

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