भीम और दुर्योधन का गदा युद्ध

महाभारत शल्य पर्व में गदा पर्व के अंतर्गत 57वें अध्याय में भीम और दुर्योधन के मध्य हुए गदा युद्ध का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

भीमसेन और दुर्योधन का गदा युद्ध

संजय कहते हैं- राजन! तदनन्तर उदार हृदय दुर्योधन ने भीमसेन को इस प्रकार आक्रमण करते देख स्वयं भी गर्जना करते हुए बड़े वेग से आगे बढ़ कर उनका सामना किया। वे दोनों बड़े-बड़े सींग वाले दो सांड़ों के समान एक दूसरे से भिड़ गये। उनके प्रहारों की आवाज महान वज्रपात के समान भयंकर जान पड़ती थी। एक-दूसरे को जीतने की इच्छा रखने वाले उन दोनों में इन्द्र और प्रह्लाद के समान भयंकर एवं रोमान्चकारी युद्ध होने लगा। उनके सारे अंग खून से लथपथ हो गये थे। हाथ में गदा लिये वे दोनों महामना मनस्वी वीर फूले हुए दो पलाश वृक्षों के समान दिखायी देते थे। उस अत्यन्त भयंकर महायुद्ध के चालू होने पर गदाओं के आघात से आग की चिनगारियां छूटने लगी। वे आकाश में जुगनुओं के दल के समान जान पड़ती थी और उनसे वहाँ के आकाश की दर्शनीय शोभा हो रही थी। इस प्रकार चलते हुए उस अत्यन्त भयंकर घमासान युद्ध में लड़ते-लड़ते वे दोनों शत्रुदमन वीर बहुत थक गये। फिर उन दोनों ने दो घड़ी तक विश्राम किया। इसके बाद शत्रुओं को संताप देने वाले वे दोनों योद्धा फिर विचित्र एवं सुन्दर गदाएं हाथ में लेकर एक-दूसरे पर प्रहार करने लगे। उन समान बलशाली महापराक्रमी नरश्रेष्ठ वीरों ने विश्राम करके पुनः हाथ में गदा ले ली और मैथुन की इच्छा वाली हथिनी के लिये लड़ने वाले दो बलवान एवं मदोन्मत्त गजराजों के समान पुनः युद्ध आरम्भ कर दिया है, यह देखकर देवता, गन्धर्व और मनुष्य सभी अत्यन्त आश्चर्य से चकित हो उठे।

पुन: दोनों के बीच घमासान गदा युद्ध

दुर्योधन और भीमसेन को पुनः गदा उठाये देख उनमें से किसी एक की विजय के सम्बन्ध में समस्त प्राणियों के हृदय में संशय उत्पन्न हो गया। बलवानों में श्रेष्ठ उन दोनों भाइयों में जब पुनः भिड़न्त हुई तो दोनों ही दोनों के चूकने का अवसर देखते हुए पैंतरे बदलने लगे। राजन! उस समय युद्धस्थल में जब भीमसेन अपनी गदा घुमाने लगे, तब दर्शकों ने देखा, उनकी भारी गदा यमदण्ड के समान भयंकर है। वह इन्द्र के वज्र के समान ऊपर उठी हुई है और शत्रु को छिन्न-भिन्न कर डालने में समर्थ है। गदा घुमाते समय उसकी घोर एवं भयानक आवाज वहाँ दो घड़ी तक गूंजती रही। आपका पुत्र दुर्योधन अपने शत्रु पाण्डु कुमार भीमसेन को वह अनुपम वेगशालिनी गदा घुमाते देख आश्चर्य में पड़ गया। भरतनन्दन! वीर भीमसेन भाँति-भाँति के मार्गो और मण्डलों का प्रदर्शन करते हुए पुनः बड़ी शोभा पाने लगे। वे दोनों परस्पर भिड़कर एक दूसरे से अपनी रक्षा के लिये प्रयत्नशील हो रोटी के टुकड़ों के लिये लड़ने वाले दो बिलावों के समान बारंबार आघात-प्रतिघात कर रहे थे। उस समय भीमसेन नाना प्रकार के मार्ग और विचित्र मण्डल दिखाने लगे। वे कभी शत्रु के सम्मुख आगे बढ़ते और कभी उसका सामना करते हुए ही पीछे हट आते थे। विचित्र अस्त्र-यन्त्रों और भाँति-भाँति के स्थानों का प्रदर्शन करते हुए वे दोनों शत्रु के प्रहारों से अपने को बचाते, विपक्षी के प्रहार को व्यर्थ कर देते और दायें-बायें दौड़ लगाते थे।[1] कभी वेग से एक-दूसरे के सामने जाते, कभी विरोधी को गिराने की चेष्टा करते, कभी स्थिर भाव से खड़े होते, कभी गिरे हुए शत्रु के उठने पर पुनः उसके साथ युद्ध करते, कभी विरोधी पर प्रहार करने के लिये चक्कर काटते, कभी शत्रु के बढ़ाव को रोक देते, कभी विपक्षी के प्रहार को विफल करने के लिये झुककर निकल जाते, कभी उछलते-कूदते, कभी निकट आकर गदा का प्रहार करते और कभी लौटकर पीछे की ओर किये हुए हाथ से शत्रु पर आघात करते थे। दोनों ही गदा युद्ध के विशेषज्ञ थे और इस प्रकार पैंतरे बदलते हुए एक दूसरे पर चोट करते थे।[2]

कुरुकुल के वे दोनों श्रेष्ठ और बलवान वीर विपक्षी को चकमा देते हुए बारंबार युद्ध के खेल दिखाते तथा पैंतरे बदलते थे। समरागंण में सब ओर युद्ध की क्रीड़ा का प्रदर्शन करते हुए उन दोनों शत्रुदमन वीरों ने सहसा अपनी गदाओं द्वारा एक दूसरे पर प्रहार किया। महाराज! जैसे दो हाथी अपने दांतों से परस्पर प्रहार करके लहू-लुहान हो जाते हैं, उसी प्रकार वे दोनों एक दूसरे पर चोट करके खून से भीगकर शोभा पाने लगे। शत्रुओं को संताप देने वाले नरेश! इस प्रकार दिन की समाप्ति के समय उन दोनों वीरों में वृत्रासुर और इन्द्र के समान क्रूरतापूर्ण एवं भयंकर युद्ध होने लगा। राजन! दोनों ही हाथ में गदा लेकर मण्डलाकार युद्ध स्थल में खड़े थे। उनमें से बलवान दुर्योधन दक्षिण मण्डल में खड़ा था और भीमसेन बायें मण्डल में।

गदा युद्ध करते हुए दोनों की अद्भुत शोभा

महाराज! युद्ध के मुहाने पर वाममण्डल में विचरते हुए भीमसेन की पसली में दुर्योधन ने गदा मारी। भरतनन्दन! आपके पुत्र द्वारा आहत किये गये भीमसेन उस प्रहार को कुछ भी न गिनते हुए अपनी भारी गदा घुमाने लगे। राजेन्द्र! दर्शकों ने भीमसेन की उस भयंकर गदा को इन्द्र के वज्र और यमराज के दण्ड के समान उठी हुई देखा। शत्रुओं को संताप देने वाले आपके पुत्र दुर्योधन ने भीमसेन को गदा घुमाते देख अपनी भयंकर गदा उठाकर उनकी गदा पर दे मारी। भारत! अपके पुत्र की वायुतुल्य गदा के वेग से उस गदा के टकराने पर बड़े जोर का शब्द हुआ और दोनों गदाओं से आग की चिनगारियां छूटने लगी। नाना प्रकार के मागा और भिन्न-भिन्न मण्डलों से विचरते हुए तेजस्वी दुर्योधन की उस समय भीमसेन से अधिक शोभा हुई। भीमसेन के द्वारा सम्पूर्ण वेग से घुमायी गयी वह विशाल गदा उस समय भयंकर शब्द करती हुई धूम और ज्वालाओं सहित आग प्रकट करने लगी। भीमसेन के द्वारा घुमायी गयी उस गदा को देखकर दुर्योधन भी अपनी लोहमयी भारी गदा को घुमाता हुआ अधिक शोभा पाने लगा। उस महामनस्वी वीर की वायुतुल्य गदा के वेग को देख कर सोमकों सहित समस्त पाण्डवों के मन में भय समा गया। समरांगण में सब ओर युद्ध की क्रीड़ा का प्रदर्शन करते उन दोनों शत्रुदमन वीरों ने सहसा अपने गदाओं द्वारा एक-दूसरे पर प्रहार किया। महाराज! जैसे दो हाथी अपने दांतों से परस्पर प्रहार करके लहू-लुहान हो जाते है, उसी प्रकार वे दोनों एक दूसरे पर चोट करके खून से लथपथ हो अद्‌भुत शोभा पाने लगे।[2]

इस प्रकार दिन की समाप्ति के समय, उन दोनों वीरों में प्रकट रूप में वृत्रासुर और इन्द्र के समान क्रूरतापूर्ण एवं भयंकर युद्ध होने लगा। तदनन्तर विचित्र मार्गो से विचरते हुए आपके महाबली पुत्र ने कुन्ती कुमार भीमसेन को खड़ा देख उन पर सहसा आक्रमण किया। यह देख क्रोध में भरे भीमसेन ने अत्यन्त कुपित हुए दुर्योधन की सुवर्णजटित उस महावेगशालिनी गदा पर ही अपनी गदा से आघात किया। महाराज! उन दोनों गदाओं के टकराने से भयंकर शब्द हुआ और आग की चिनगारियां छूटने लगी। उस समय ऐसा जान पड़ा, मानो दोनों ओर से छोड़े गये दो वज्र परस्पर टकरा गये हो। राजेन्द्र! भीमसेन की छोड़ी हुई उस वेगवती गदा के गिरने से धरती डोलने लगी। जैसे क्रोध में भरा हुआ मतवाला हाथी अपने प्रतिद्वन्द्वी गजराज को देखकर सहन नहीं कर पाता, उसी प्रकार रणभूमि में अपनी गदा को प्रतिहत हुई देख कुरुवंशी दुर्योधन नही सह सका। तत्पश्चात राजा दुर्योधन ने अपने मन में दृढ़ निश्चय लेकर बाये मण्डल से चक्कर लगाते हुए अपनी भयंकर वेगशाली गदा से कुन्ती कुमार भीमसेन के मस्तक पर प्रहार किया। महाराज! आपके पुत्र के आघात से पीड़ित होने पर भी पाण्डु पुत्र भीमसेन विचलित नही हुए। वह अद्‌भुत सी बात हुई। राजन! गदा की चोट खाकर भी जो भीमसेन एक पग भी इधर-उधर नहीं हुए, वह महान आश्चर्य की बात थी, जिसकी सभी सैनिकों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की।[3]

दुर्योधन द्वारा भीम को मूर्च्छित करना

तदनन्तर भयंकर पराक्रमी भीमसेन ने दुर्योधन पर अपनी सुवर्णजटित तेजस्विनी एवं बड़ी भारी गदा छोड़ी। परंतु महाबली दुर्योधन को उससे तनिक भी घबराहट नहीं हुई उसने फुर्ती से इधर-उधर होकर उस प्रहार को व्यर्थ कर दिया। यह देख वहाँ सब लोगों को महान आश्चर्य हुआ। राजन! भीमसेन की चलायी हुई वह गदा जब व्यर्थ होकर गिरने लगी, उस समय उसने वज्रपात के समान महान शब्द प्रकट करके पृथ्वी को हिला दिया। जब राज दुर्योधन ने देखा कि भीमसेन की गदा नीचे गिर गयी और उनका वार ख़ाली गया, तब क्रोध में भरे हुए महाबली कुरुश्रेष्ठ दुर्योधन ने कौशिक मार्गो का आश्रय ले बार-बार उछलकर भीमसेन को धोखा देकर उनकी छाती में गदा मारी। उस महासमर में आपके पुत्र की गदा की चोट खाकर भीमसेन मूर्च्छित से हो गये और एक क्षण तक उन्हें अपने कर्तव्य का ज्ञान तक न रहा। राजन! जब भीमसेन की ऐसी अवस्था हो गयी, उस समय सोमक और पाण्डव बहुत ही खिन्न और उदास हो गये। उनकी विजय की आशा नष्ट हो गयी।

उस प्रहार से भीमसेन मतवाले हाथी की भाँति कुपित हो उठे और जैसे एक गजराज दूसरे गजराज पर धावा करता है, उसी प्रकार उन्होंने आपके पुत्र पर आक्रमण किया। जैसे सिंह जंगली हाथी पर झपटता है, उसी प्रकार भीमसेन गदा लेकर बड़े वेग से आपके पुत्र की ओर दौड़े। राजन! गदा का प्रहार करने में कुशल भीमसेन ने आपके पुत्र राजा दुर्योधन के निकट पहुँच कर गदा घुमायी और उसे मार डालने के उद्देश्य से उसकी पसली में आघात किया। राजन! उस प्रहार से व्याकुल हो आपका पुत्र पृथ्वी पर घुटने टेक कर बैठ गया। उस कुरुकुल के श्रेष्ठ वीर दुर्योधन के घुटने टेक देने पर सृंजयों ने बड़े जोर से हर्षध्वनि की।[3] भरतश्रेष्ठ! उन सृंजयों का वह सिंहनाद सुनकर पुरुष प्रवर आपका महाबाहु पुत्र दुर्योधन अमर्ष से कुपित हो उठा और खड़ा होकर महान सर्प के समान फुंकार करने लगा। उसने दोनों आंखों से भीमसेन की ओर इस प्रकार देखा, मानो उन्हें भस्म कर डालना चाहता हो। भरतवंश का वह श्रेष्ठ वीर हाथ में गदा लेकर युद्धस्थल में भीमसेन का मस्तक कुचल डालने के लिये उनकी ओर दौड़ा। पास पहुँच कर उस भयंकर पराक्रमी महामनस्वी वीर ने महामना भीमसेन के ललाट पर गदा से आघात किया, परंतु भीमसेन पर्वत के समान अविचल भाव से खड़े रह गये, तनिक भी विचलित नहीं हुए। राजन! रणभूमि में उस गदा की चोट खाकर भीमसेन के मस्तक से रक्त की धारा बह चली और वे मद की धारा बहाने वाले गजराज के समान अधिक शोभा पाने लगे। तदनन्तर अर्जुन के बड़े भाई शत्रु सूदन भीमसेन ने बलपूर्वक पराक्रम प्रकट करके वज्र और अशनि के तुल्य महान शब्द करने वाली वीर विनाशिनी लोहमयी गदा हाथ में लेकर उसके द्वारा अपने शत्रु पर प्रहार किया। भीमसेन के उस प्रहार से आहत होकर आपके पुत्र के शरीर की नस-नस ढीली हो गयी और वह वायु के वेग से प्रताड़ित हो झोंके खाने वाले विकसित शाल वृक्ष की भाँति कांपता हुआ पृथ्वी पर गिर पड़ा।[4]

दुर्योधन का पराक्रम

आपके पुत्र को पृथ्वी पर पड़ा देख पाण्डव हर्ष में भरकर सिंहनाद करने लगे। इतने ही में आपक पुत्र होश में आ गया और सरोवर से निकले हुए हाथी के समान उछल कर खड़ा हो गया। सदा अमर्ष में भरे रहने वाले महारथी राजा दुर्योधन ने एक शिक्षित योद्धा की भाँति विचरते हुए अपने सामने खड़े भीमसेन पर पुनः गदा का प्रहार किया। उसकी चोट खाकर भीमसेन को सारा शरीर शिथिल हो गया और उन्होंने धरती थाम ली। भीमसेन को युद्ध स्थल में बलपूर्वक भूमि पर गिराकर कुरुराज दुर्योधन सिंह के समान दहाड़ने लगा। उसने सारी शक्ति लगाकर चलायी हुई गदा के आघात से भीमसेन के वज्रतुल्य कवच का भेदन कर दिया था। उस समय आकाश में हर्षध्वनि करने वाले देवताओं और अप्सराओं का महान कोलाहल गूंज उठा। साथ ही देवताओं द्वारा बहुत ऊंचे से की हुई विचित्र पुष्प समूहों की वहाँ अच्छी वर्षा होने लगी। राजन! तदनन्तर यह देखकर कि भीमसेन का सुदृढ़ कवच छिन्न-भिन्न हो गया, नरश्रेष्ठ भीम धराशायी हो गये और कुरुराज दुर्योधन का बल क्षीण नहीं हो रहा है, शत्रुओं के मन में बड़ा भारी भय समा गया। तत्पश्चात दो घड़ी में सचेत हो भीमसेन खून से भीगे हुए अपने मुंह को पोंछते हुए उठे और बलपूर्वक अपने को संभाल कर धैर्य का आश्रय ले आंख खोलकर देखते हुए पुनः युद्ध के लिये खड़े हो गये। उस समय यमराज के सदृश पराक्रमी नकुल और सहदेव, धृष्टद्युम्न तथा पराक्रमी शिनिपौत्र सात्यकि- ये सब के सब विजय के अभिलाषी हो ‘मैं लड़ूँगा, मैं लड़ूँगा’ ऐसा कहकर बड़ी उतावली के साथ आपके पुत्र को ललकारने और उस पर आक्रमण करने लगे। परंतु बलवान पाण्डु पुत्र भीम ने उन सब को रोककर स्वयं ही आपके पुत्र पर पुनः काल के समान आक्रमण किया और खेद एवं कम्प से रहित होकर वे रणभूमि में उसी प्रकार विचरने लगे, जैसे देवराज इन्द्र श्रेष्ठ दैत्य नमुचि पर आक्रमण करके युद्धस्थल में विचरण करते थे।[4]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 57 श्लोक 1-18
  2. 2.0 2.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 57 श्लोक 19-36
  3. 3.0 3.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 57 श्लोक 37-57
  4. 4.0 4.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 57 श्लोक 58-72

सम्बंधित लेख

महाभारत शल्य पर्व में उल्लेखित कथाएँ


शल्य और दुर्योधन वध के समाचार से धृतराष्ट्र का मूर्च्छित होना | धृतराष्ट्र को विदुर द्वारा आश्वासन देना | दुर्योधन के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप करना | धृतराष्ट्र का संजय से युद्ध का वृत्तान्त पूछना | कर्ण के मारे जाने पर पांडवों के भय से कौरव सेना का पलायन | भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदलों का वध | अर्जुन द्वारा कौरवों की रथसेना पर आक्रमण | दुर्योधन का अपने सैनिकों को समझाकर पुन: युद्ध में लगाना | कृपाचार्य का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना | दुर्योधन का कृपाचार्य को उत्तर देना | दुर्योधन का संधि स्वीकर न करके युद्ध का ही निश्चय करना | अश्वत्थामा का शल्य को सेनापति बनाने का प्रस्ताव | दुर्योधन के अनुरोध पर शल्य का सेनापति पद स्वीकार करना | शल्य के वीरोचित उद्गार | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को शल्यवध हेतु उत्साहित करना | उभयपक्ष की सेनाओं का रणभूमि में उपस्थित होना | कौरव-पांडवों की बची हुई सेनाओं की संख्या का वर्णन | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध | पांडव वीरों के भय से कौरव सेना का पलायन | नकुल द्वारा कर्ण के तीन पुत्रों का वध | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का भयानक युद्ध | शल्य का पराक्रम | कौरव-पांडव योद्धाओं के द्वन्द्वयुद्ध | भीम के द्वारा शल्य की पराजय | भीम और शल्य का भयानक गदा युद्ध | दुर्योधन द्वारा चेकितान का वध | दुर्योधन की प्रेरणा से कौरव सैनिकों का पांडव सेना से युद्ध | युधिष्ठिर और माद्रीपुत्रों के साथ शल्य का युद्ध | मद्रराज शल्य का अद्भुत पराक्रम | अर्जुन और अश्वत्थामा का युद्ध | अश्वत्थामा के द्वारा सुरथ का वध | दुर्योधन और धृष्टद्युम्न का युद्ध | शल्य के साथ नकुल और सात्यकि आदि का घोर युद्ध | पांडव सैनिकों और कौरव सैनिकों का द्वन्द्वयुद्ध | भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय | युधिष्ठिर द्वारा शल्य की पराजय | भीम द्वारा शल्य के घोड़े और सारथि का वध | युधिष्ठिर के द्वारा शल्य का वध | युधिष्ठिर के द्वारा शल्य के भाई का वध | सात्यकि और युधिष्ठिर द्वारा कृतवर्मा की पराजय | मद्रराज के अनुचरों का वध और कौरव सेना का पलायन | पांडव सैनिकों द्वारा पांडवों की प्रशंसा और धृतराष्ट्र की निन्दा | भीम द्वारा इक्कीस हज़ार पैदलों का संहार | दुर्योधन का अपनी सेना को उत्साहित करना | धृष्टद्युम्न द्वारा शाल्व के हाथी का वध | सात्यकि द्वारा शाल्व का वध | सात्यकि द्वारा क्षेमधूर्ति का वध | कृतवर्मा का सात्यकि से युद्ध तथा उसकी पराजय | दुर्योधन का पराक्रम | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घोर संग्राम | कौरव पक्ष के सात सौ रथियों का वध | उभय पक्ष की सेनाओं का मर्यादा शून्य घोर संग्राम | शकुनि का कूट युद्ध और उसकी पराजय | अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से दुर्योधन के दुराग्रह की निन्दा | अर्जुन द्वारा कौरव रथियों की सेना का संहार | अर्जुन और भीम द्वारा कौरवों की रथसेना एवं गजसेना का संहार | अश्वत्थामा आदि के द्वारा दुर्योधन की खोज | सात्यकि द्वारा संजय का पकड़ा जाना | भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध | भीम के द्वारा कौरवों की चतुरंगिणी सेना का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन के द्वारा सत्यकर्मा और सत्येषु का वध | अर्जुन के द्वारा सुशर्मा का उसके पुत्रों सहित वध | भीम के द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शन का अन्त | सहदेव के द्वारा उलूक का वध | सहदेव के द्वारा शकुनि का वध
ह्रदप्रवेश पर्व
बची हुई समस्त कौरव सेना का वध | संजय का क़ैद से छूटना | दुर्योधन का सरोवर में प्रवेश | युयुत्सु का राजमहिलाओं के साथ हस्तिनापुर में जाना
गदा पर्व
अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा की सरोवर में दुर्योधन से बातचीत | युधिष्ठिर का सेना सहित सरोवर पर जाना | कृपाचार्य आदि का सरोवर से दूर हट जाना | युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण की बातचीत | सरोवर में छिपे दुर्योधन के साथ युधिष्ठिर का संवाद | युधिष्ठिर के कहने से दुर्योधन का सरोवर से बाहर आना | दुर्योधन का किसी एक पांडव से गदायुद्ध हेतु तैयार होना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को फटकारना | श्रीकृष्ण द्वारा भीमसेन की प्रशंसा | भीम और दुर्योधन में वाग्युद्ध | बलराम का आगमन और सम्मान | भीम और दुर्योधन के युद्ध का आरम्भ | बलदेव की तीर्थयात्रा | प्रभासक्षेत्र के प्रभाव तथा चंद्रमा के शापमोचन की कथा | उदपान तीर्थ की उत्पत्ति तथा त्रित मुनि के कूप में गिरने की कथा | त्रित मुनि का यज्ञ | त्रित मुनि का अपने भाइयों का शाप देना | वैशम्पायन द्वारा विभिन्न तीर्थों का वर्णन | नैमिषारण्य तीर्थ का वर्णन | बलराम का सप्त सारस्वत तीर्थ में प्रवेश | सप्तसारस्वत तीर्थ की उत्पत्ति | मंकणक मुनि का चरित्र | औशनस एवं कपालमोचन तीर्थ की माहात्म्य कथा | रुषंगु के आश्रम पृथूदक तीथ की महिमा | आर्ष्टिषेण एवं विश्वामित्र की तपस्या तथा वरप्राप्ति | अवाकीर्ण तीर्थ की महिमा और दाल्भ्य की कथा | यायात तीर्थ की महिमा और ययाति के यज्ञ का वर्णन | वसिष्ठापवाह तीर्थ की उत्पत्ति | ऋषियों के प्रयत्न से सरस्वती नदी के शाप की निवृत्ति | सरस्वती नदी के जल की शुद्धि | अरुणासंगम में स्नान से राक्षसों और इन्द्र का संकटमोचन | कुमार कार्तिकेय का प्राकट्य | कुमार कार्तिकेय के अभिषेक की तैयारी | स्कन्द का अभिषेक | स्कन्द के महापार्षदों के नाम, रूप आदि का वर्णन | स्कन्द की मातृकाओं का परिचय | स्कन्द देव की रणयात्रा | स्कन्द द्वारा तारकासुर, महिषासुर आदि दैत्यों का सेनासहित संहार | वरुण का अभिषेक | अग्नितीर्थ, ब्रह्मयोनि और कुबेरतीर्थ की उत्पत्ति का प्रसंग | श्रुतावती और अरुन्धती के तप की कथा | इन्द्रतीर्थ, रामतीर्थ, यमुनातीर्थ और आदित्यतीर्थ की महिमा | असित देवल तथा जैगीषव्य मुनि का चरित्र | दधीच ऋषि तथा सारस्वत मुनि के चरित्र का वर्णन | वृद्ध कन्या का चरित्र | वृद्ध कन्या का शृंगवान से विवाह तथा स्वर्गगमन | ऋषियों द्वारा कुरुक्षेत्र की सीमा और महिमा का वर्णन | प्लक्षप्रस्रवण आदि तीर्थों तथा सरस्वती की महिमा | बलराम का नारद से कौरवों के विनाश का समाचार सुनना | भीम-दुर्योधन का युद्ध देखने के लिए बलराम का जाना | बलराम की सलाह से सबका कुरुक्षेत्र के समन्तपंचक तीर्थ में जाना | समन्तपंचक तीर्थ में भीम और दुर्योधन में गदायुद्ध की तैयारी | दुर्योधन के लिए अपशकुन | भीमसेन का उत्साह | भीम और दुर्योधन का वाग्युद्ध | भीम और दुर्योधन का गदा युद्ध | कृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन के संकेत से भीम द्वारा दुर्योधन की जाँघें तोड़ना | दुर्योधन के धराशायी होने पर भीषण उत्पात प्रकट होना | भीमसेन द्वारा दुर्योधन का तिरस्कार | युधिष्ठिर का भीम को अन्याय करने से रोकना | युधिष्ठिर का दुर्योधन को सान्त्वना देते हुए खेद प्रकट करना | क्रोधित बलराम को कृष्ण का समझाना | युधिष्ठिर के साथ कृष्ण और भीम की बातचीत | पांडव सैनिकों द्वारा भीम की स्तुति | कृष्ण के आक्षेप पर दुर्योधन का उत्तर | कृष्ण द्वारा पांडवों का समाधान | पांडवों का कौरव शिबिर में पहुँचना | अर्जुन के रथ का दग्ध होना | पांडवों का कृष्ण को हस्तिनापुर भेजना | कृष्ण का हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र और गांधारी को आश्वासन देना | कृष्ण का पांडवों के पास लौटना | दुर्योधन का संजय के सम्मुख विलाप | दुर्योधन का वाहकों द्वारा अपने साथियों को संदेश भेजना | दुर्योधन को देखकर अश्वत्थामा का विषाद एवं प्रतिज्ञा करना | अश्वत्थामा का सेनापति पद पर अभिषेक

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः