भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव की भीषण प्रतिज्ञा

महाभारत सभा पर्व के ‘द्यूत पर्व’ के अंतर्गत अध्याय 77 के अनुसार भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव की भीषण प्रतिज्ञा का वर्णन इस प्रकार है[1]-

दु:शासन की बातों पर भीम का क्रोधित होना

यह सब सुनकर भीमसेन को बड़ा क्रोध हुआ। जैसे हिमालय की गुफा में रहने वाला सिंह गीदड़ के पास जाय, उसी प्रकार वे सहसा दु:शासन के पास जा पहुँचे और रोष पूर्वक उसे रोककर जोर-जोर से फटकारते हुए बोले। भीमसेन ने कहा - क्रूर एवं नीच दु:शासन! तू पापी मनुष्‍यों द्वारा प्रयुक्‍त होने वाली ओछी बातें बक रहा है। अरे! तू अपने बाहुबल से नहीं, शकुनि ने छल विद्या के प्रभाव से आज राजओं की मण्‍डली में अपने मुँह से अपनी बड़ाई कर रहा है। जैसे यहाँ तू अपने वचन रूपी बाणों से हमारे मर्मस्‍थानों में अत्‍यन्‍त पीड़ा पहुँचा रहा है, उसी प्रकार जब युद्ध में मैं तेरा हृदय विदीर्ण करने लगूँगा, उस समय तेरी कही हुई इन बातों की याद दिलाऊँगा। जो लोग क्रोध और लोभ के वशीभूत हो तुम्‍हारे रक्षक बनकर पीछे-पीछे चलते हैं, उन्‍हें उनके सम्‍बन्धियों सहित यमलोक भेज दूँगा। वैशम्‍पायनजी कहते हैं - जनमेजय! मृगचर्म धारण किये भीमसेन को ऐसी बातें करते देख निर्लज दु:शासन कौरवों के बीच में उनकी हँसी उड़ाते हुए नाचने लगा और ‘ओ बैल! ओ बैल’ कहकर उन्‍हें पुकारने लगा। उस समय भीम का मार्ग धर्मराज युधिष्ठिर ने रोक रक्‍खा था (अन्‍यथा वे दु:शासन को जीता न छोड़ते्)।[1]

भीम का भीषण प्रतिज्ञा करना

भीमसेन बोले - ओ नृशंस दु:शासन! तेरे ही मुख से ऐसी कठोर बातें निकल सकती हैं, तेरे सिवा दूसरा कौन है, जो छल-कपट से धन पाकर इस तरह आप ही अपनी प्रशंसा करेगा। मेरी बात सुन ले। यह कुन्‍तीपुत्र भीमसेन यदि युद्ध में तेरी छाती फाड़कर तेरा रक्‍त न पीये तो इसे पुण्‍यलोकों की प्राप्ति न हो। मैं तुझसे सच्‍ची बात कह रहा हूँ, शीघ्र ही यह समय आने वाला है, जबकि समस्‍त धनुर्धरों के देखते-देखते मैं युद्ध में धृतराष्‍ट्र सभी पुत्रों का वध करके प्राप्‍त करूँगा। वैशम्‍पायनजी कहते हैं - जनमेजय! जब पाण्‍डव-लोग सभा-भवन से निकले, उस समय मन्‍दबुद्धि राजा दुर्योधन हर्ष में भरकर सिंह के समान मस्‍तानी चाल से चलने-वाले भीमसेन की खिल्‍ली उड़ाते हुए उनकी चाल की नकल करने लगा। यह देख भीमसेन ने अपने आधे शरीर को पीछे की ओर मोड़कर कहा - ‘ओ मूढ़! केवल दु:शासन के रक्‍तपान द्वारा ही मेरा कर्तव्‍य पूरा नहीं हो जाता है। तुझे भी सम्‍बन्धियों-सहित शीघ्र ही यमलोक भेजकर तेरे इस परिहास की याद दिलाते हुए इसका समुचित उत्तर दूँगा’। इस प्रकार अपना अपमान होता देख बलवान् एवं मानी भीमसेन क्रोध को किसी प्रकार रोककर राजा युधिष्ठिर के पीछे कौरव सभा से निकलते हुए इस प्रकार बोले। भीमसेन ने कहा - मैं दुर्योधन का वध करूँगा, अर्जुन कर्ण का संहार करेंगे और इस जुआरी शकुनि को सहदेव मार डालेंगे। साथ ही इस भरी सभा में मैं पुन: एक बहुत बड़ी बात कर रहा हूँ। मेरा यह विश्‍वास है कि देवता लोग मेरी यह बात सत्‍य कर दिखायेंगे। जब हम कौरव और पाण्‍डवों में युद्ध होगा, उस समय इस पापी दुर्योधन को मैं गदा से मार गिराऊँगा तथा रणभूमि में पड़े हुए इस पापी के मस्‍तक को पैर से ठुकराऊँगा। और यह जो केवल बात बनाने में बहादुर क्रूरस्‍वभाव - वाला दुरात्‍मा दु:शासन है, इसकी छाती का खून उसी प्रकार पी लूँगा, जैसे सिंह किसी मृग का रक्‍त पान करता है।[1]

अर्जुन, नकुल और सहदेव का क्रोधित हो भीषण प्रतिज्ञा करना

अर्जुन ने कहा - आर्य भीमसेन! साधु पुरुष जो कुछ करना चाहते हैं, उसे इस प्रकार वाणी द्वारा सूचित नहीं करते। आज से चौहदवें वर्ष में जो घटना घटित होगी, उसे स्‍वयं ही लोग देखेंगे। भीमसेन बोले - यह भूमि दुर्योधन, कर्ण, दुरात्‍मा शकुनि तथा चौथे दु:शासन के रक्‍त का निश्‍चय ही पान करेगी। अर्जुन ने कहा - भैया भीमसेन! जो हम लोगों के दोष ही ढूँढ़ा करता है, हमारे दु:ख देखकर प्रसन्‍न होता है, कौरवों को बुरी सलाहें देता है और व्‍यर्थ बढ़-बढ़कर बातें बनाता है, उस कर्ण को मैं आपकी आज्ञा से अवश्‍य युद्ध में मार डालूँगा। अपने भाई भीमसेन का प्रिय करने की इच्‍छा से अर्जुन यह प्रतिज्ञा करता है कि ‘मैं युद्ध में कर्ण और उसके अनुगामियों को भी बाणों द्वारा मार डालूँगा’। दूसरे भी जो नरेश बुद्धि के व्‍यामोहक्‍श हमारे विपक्ष में होकर युद्ध करेंगे, उन सबको अपने तीक्ष्‍ण सायको द्वारा मैं यमलोक पहुँचा दूँगा। यदि मेरा सत्‍य विचलित हो जाय तो हिमालय पर्वत अपने स्‍थान से हट जाये, सूर्य की प्रभा नष्‍ट हो जाय और चन्‍द्रमा से उसकी शीतलता दूर हो जाय (अर्थात् जैसे हिमालय अपने स्‍थान से नहीं हट सकता, सूर्य की प्रभा नष्‍ट नहीं हो सकती, चन्‍द्रमा से उसकी शीतलता दूर नहीं हो सकती, वैसे ही मेरे वचन मिथ्‍या नहीं हो सकते)। यदि आज से चौहदवें वर्ष में दुर्योधन सत्‍कारपूर्वक हमारा राज्‍य हमें वापस न दे देगा तो ये सब बातें सत्‍य होकर रहेंगी। वैशम्‍पायनजी कहते हैं - जनमेजय! अर्जुन के ऐसा कहने पर परम सुन्‍दर प्रतापी वीर माद्रीनन्‍दन सहदेव ने अपनी विशाल भुजा ऊपर उठाकर शकुनि के वध की इच्‍छा से इस प्रकार कहा; उस समय उनके नेत्र क्रोध से लाल हो रहे थे और वे फुँफकारते हुए सर्प की भाँति उच्‍छ्वास ले रहे थे। सहदेव ने कहा - ओ गान्‍धार निवासी क्षत्रिय कुल के कलंक मूर्ख शकुने! जिन्‍हें तू पासे समझ रहा है, वे पासे नहीं है, उनके रूप में तूने यद्ध में तीखे बाणों का वरण किया है। आर्य भीमसेन ने बन्‍धु-बान्‍धवों सहित तेरे विषय में जो बात कही हैं, मैं अवश्‍य पूर्ण करूँगा। तुझे अपने बचाव-के लिये जो कुछ करना हो, वह सब कर डाल। सुबलकुमार! यदि तू क्षत्रियधर्म के अनुसार संग्राम में डटा रह जायेगा, तौ मैं वेगपूर्वक तुझे तेरे बन्‍धु-बान्‍धवों-सहित अवश्‍य मार डालूँगा। राजन्! सहदेव की बात सुनकर मनुष्‍यों में परम दर्शनीय रूप वाले नकुल ने भी यह बात कही। नकुल बोले- दुर्योधन के प्रियसाध्‍न में लगे हुए जिन धृतराष्‍ट्र पुत्रों ने इस द्यूमसभा में द्रुपदकुमारी कृष्‍णा को कठोर बातें सुनायी हैं, काल से प्रेरित हो मौत के मुँह में जाने की इच्‍छा रखने वाले उन दुराचारी बहुसंख्‍यक धृतराष्‍ट्र कुमारों को मैं यमलोक का अतिथि बना दूँगा। धर्मराज की आज्ञा से द्रौपदी का प्रिय करते हुए मैं सारी पृथ्वी को धृतराष्ट्र-पुत्रों से सूनी कर दूँगा; इसमे अधिक देर नहीं है। वैशम्‍पायनजी कहते हैं - राजन्! इस प्रकार वे सभी पुरुष सिंह महाबाहु पाण्‍डव बहुत-सी प्रतिताएँ करके राजा धृतराष्‍ट्र के पास गये। [2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 महाभारत सभा पर्व अध्याय 77 श्लोक 15-29
  2. महाभारत सभा पर्व अध्याय 77 श्लोक 30-46

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