विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
12. शान्ति पर्व
अध्याय : 59-66
74. दस्यु जातियों का आर्य संस्कृति में परिवर्तन
इसके बाद उस युग की एक महत्त्वपूर्ण समस्या को लिया गया है। उसे किसी भागवत लेखक ने राजधर्म के अन्तर्गत डालकर उसका समाधान भी सुझाया है। समस्या यह थी कि गुप्त युग से पूर्व अनेक विदेशी जातियां इस देश में आ गईं थीं और वे देष के भिन्न-भिन्न भागों में बस गईं थीं। वे दस्युओं की भाँति रहती थीं और भारतीय सामाजिक व्यवस्था के नियमों को उन्होंने स्वीकार नहीं किया था। अतः यहाँ के राजाओं के सामने यह समस्या थी कि उन्हें कैसे आर्य धर्म में दीक्षित किया जाय। यही प्रश्नोत्तर के रूप में इस अध्याय का विषय है। मान्धाता बहुत बड़े चक्रवर्ती थे। बौद्ध और भागवत दोनों ही उन्हें मानते थे। बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान में मन्धाता के चरित्र का विस्तार से वर्णन करते हुए लिखा है कि मान्धाता ने सम्पूर्ण पृथ्वी पर धर्म-स्थापना करके स्वर्ग या उत्तरकुरु में धर्म स्थापित करने के लिए वहाँ की यात्रा की और असुरों के शरीरों पर अपने धर्मरथ का पहिया चलाया। भागवतों के 16 राजाओं की सूची में मान्धाता को विशेष स्थान दिया गया है। उन्हें भारतीय महाचक्रवर्ती का प्रतीक समझाना चाहिए। उन्होंने इन्द्र से पूछा कि हमारे राज्य के भिन्न-भिन्न भागों में जो विदेशी दस्यु बस गये हैं, उन्हें किस प्रकार धर्म मार्ग में लाया जाय। यहाँ पहले 18 प्रकार के उन दस्युओं के नाम दिये गये हैं, जिनमें कितनी ही विदेशों से आई जातियां थीं और कितनी ही यहाँ बसने वाली ऊबड़-खाबड़ जातियां थीं जो भारतीय संस्कृति में घुल-मिल नहीं पाई थीं। ये नाम इस प्रकार हैंः पह्लव- अंग्रेज़ी में इनका नाम पार्थियन है, जो ईरान के एक प्रदेश पार्थिया से आये थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यह मध्य एशिया के सुग्ध या सोग्डियाना प्रदेश में रहने वाली जाति थी जिसका उल्लेख भागवत के ‘आभीरकङ्का यवनाः खशादय’ में आया है। ये भी भागवत सांचे में ढल गये थे। इनमें से अधिकांश कांगड़ा में आबाद हुए।
- ↑ पाठा. काचाः, वड्क्षु के ऊपरी हिस्से में रहने वाली जाति
- ↑ ब्रह्मक्षत्र लिच्छवियों का नाम था। इन्हें शर्मक-वर्मक भी कहते थे। इनकी राजकुमारी गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त से ब्याही गई। तब से गुप्त सेना में लिच्छवियों की एक मजबूत टुकड़ी भी रहने लगी। मत्स्य और लिंग पुराणों में इसका उल्लेख है। अभी तक लिच्छवियों के वंशज अपने को त्रिकर्मा ब्राह्मण कहते हैं। वे ही जेत्थरिया या भुइंहार हैं।
संबंधित लेख
क्र.स. | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज