भागवत सुधा -करपात्री महाराज
पूज्य स्वामी जी का संस्मरणात्मक परिचय स्वामी श्री अखण्डानन्द जी सरस्वती ‘’तेज एक है। वही तेज जल आदि के क्रम से घट होता है। घट में जल एवं जल में सूर्य आदि रूप तेज का ही होता है। अनेक घटों में अनेक प्रतिबिम्ब तेज के होते हैं। उन प्रतिबिम्बों की अपेक्षा से ही तेज में बिम्बत्ब की कल्पना होती है। बिम्ब-प्रतिबिम्ब की एकता समझना सुगम है परन्तु घट, जल एवं तेज की एकता समझना कठिन है। इसी प्रकार आत्मा-परमात्मा की बिम्ब प्रतिबिम्ब की एकता रूप से एकता समझ लेना अनायास सिद्ध है। परन्तु, अचेतन रूप से प्रतीयमान प्रपंच की परमात्मा से एकता अनुभव करना कठिन है। अतः प्रपंच की परमात्मा से एकता अनुभव करने के लिये बाध प्रक्रिया का आलम्बन लेना पड़ता है। वस्तुतः एक ही परमात्मा मायात्मक ज्ञान-शक्ति क्रिया-शक्ति आदि के योग से विविध नाम-रूप का आधार बनता है। वही शिव, विष्णु आदि भी होता है। वही अपनी अनिर्वचनीय शक्ति के द्वारा राम, कृष्ण आदि के रूप में भी प्रकट होता है। भक्त-गण अपनी-अपनी भावना के अनुसार उसकी उपासना करते हैं। नाम अनेक होने पर भी, कल्पनायें अगणित होने पर भी, परमात्मा परमार्थतः एक ही है। |
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