भजन बिनु कूकर-सूकर जैसौ -सूरदास

सूरसागर

द्वितीय स्कन्ध

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राग सारंग



भजन बिनु कूकर-सूकर जैसौ।
जैसैं घर बिलाव के मूसा, रहत बिषय-बस वैसौ।
बग-बगुली अरु गीध-गीधिनो, आइ जनम लियौ तैसौ।
उनहूँ कैं गृह, सुत, दारा हैं, उन्‍हैं भेद कहु कैसौ ?
जीव मारि कै उदर भरत हैं, तिनकौ लेखौ ऐसौ।
सूरदास भगवंत –भजन बिनु, मनौ ऊँट-वृष-भैसौ।।14।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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