भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
कालयवन
सभी राजाओं को शाल्व का यह मत अच्छा लगा। मगधराज जरासन्ध ने उदास मन से स्वीकृति दे दी। दूसरा उपाय उसके सामने नहीं था। वहाँ कुण्डिनपुर से शाल्व को ही राजाओं ने दूत बना कर भेजा। जरासन्ध ने तथा दूसरों ने भी विदा ली। जाते जाते जरासन्ध कह गया–अब तक सब नरेश संकट में मेरी शरण लेते थे। अपना खोया राज्य मेरी सहायता से प्राप्त करते थे। अब ये नरेश मुझे ही दूसरे का आश्रय लेने को प्रेरित कर रहे हैं। मैं निरूपाय हो गया हूँ। मुझे विवश होकर ऐसा करना पड़ा है, किंतु ऐसे जीवन से तो मर जाना ही सहस्रगुना श्रेष्ठ है। आप कह क्या रहे हैं? राजागणों ने आतुर होकर पूछा–आप राजेंद्र हैं। केवल आपकी ही रक्षा का प्रश्न नहीं है। हम सबकी रक्षा का प्रश्न है। आप सब ठीक कहते हैं। आप सबकी रक्षा के लिए मैं इन सौभविमान के स्वामी को भेज रहा हूँ। ये अपने विमान से कालयवन के पास जाएं। कालयवन से हम सबके दूत होकर यह कहें कि युद्ध उपस्थित होने पर वे संपूर्ण सेना के साथ मथुरा आ जाएं। जरासन्ध ने कहा– मैं दूसरे की शरण नहीं लूंगा। कृष्ण हों या बलराम, मैं युद्ध में उनका सामना करूंगा। मुझे केवल कालयवन की सहायता चाहिए। यह कहकर जरासन्ध मगध चला गया–शाल्व अपने विमान में बैठा। विमान गगन में तीव्र वेग से उत्तर–पश्चिम यवनदेश की ओर उड़ चला। कालयवन धार्मिक, बुद्धिमान, नीतिज्ञ, समस्त व्यसनों से रहित, सत्यवादी, जितेंद्रिय नरेश था। एक ही त्रुटि थी उसमें–अहंकारी था और भगवत भक्त नहीं था। धर्म के प्रभुअच्युत हैं। उन अच्युत में भक्ति न हो–बन्ध्या है धर्म। वह क्या देगा? धर्म को अंतिम गति–अंतिम फल स्वर्ग ही तो होगा भगवत विमुख होने पर। कालयवन संगदोष के कारण अहंकारी हो गया था, किंतु उसे श्रीकृष्ण का दर्शन मिला–किसी भी रूप में मिला–उसके धर्म का परम फल यह। कालयवन की सभा में ही सौभ-विमान उतरा। वह दक्षिण दिशा से आया था। विमान से शाल्व नीचे आया। यवनराज के मंत्री ने प्रसन्न होकर अपने नरेश को शाल्व का परिचय दिया। स्वयं कालयवन अर्ध्य लेकर आगे बढ़ा। शाल्व नम्रता पूर्वक बोला–मैं अर्ध्य ग्रहण करने योग्य नहीं हूँ। नरेंद्र–मंडल का दूत बन कर मैं आपके समीप आया हूँ। जानता हूँ। मगधराज जरासन्ध ने भेजा है आपको। खुल कर हंसा कालयवन–देवर्षि अभी कुछ समय पूर्व ही यहाँ से गए हैं। उन्होंने आपके आगमन की सूचना दे दी है। आप मेरा अर्ध्य और अर्चन स्वीकार करें। प्रतिनिधि की पूजा से सब नरेशों की पूजा हो जाएगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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