भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
द्वारिकापुरी
'मथुरा में रहना अच्छा नहीं है'। श्रीकृष्ण ने अभिप्राय स्पष्ट किया–गरुड़ ने जिस स्थान का संकेत किया है, वह भी मथुरा के समान ही नित्यधाम है। मोक्षदापुरी है। वहाँ ऐसा दुर्ग बन सकता है जिसकी खाई समुद्र होगा। मनुष्य मात्र के लिए वहाँ पहुँचना कठिन होगा। वहाँ हम रहकर थोड़े से सामान्य सैनिक भी भारी सेना एवं बलवान शत्रु का सरलता से सामना कर सकेंगे। आप अनुमति दें तो विश्वकर्मा वहाँ आज ही नगर का निर्णाण कर देंगे। हम दोनों समस्त स्वजनों को वहीं भेज कर यहाँ रहेंगे और आक्रमणकारियों की शक्ति देखकर उनके साथ वैसा व्यवहार करेंगे। बड़े भाई से पूछना केवल मर्यादा थी। इसलिए कि वे अग्रज हैं। इसलिए भी कि जहाँ दुर्ग बनना है, वह भूमि देवी रेवती के पितृ कुल की है, किंतु मर्यादा ही थी यह। भगवान बलराम ने कब छोटे भाई की योजना में बाधा दी है? उन्होंने स्वीकृति दे दी। आप कुशलस्थली को भली प्रकार से जानते हैं। स्मरण करते ही देव शिल्पी विश्वकर्मा सम्मुख उपस्थित हो गए। हाथ जोड़ कर उन्होंने आज्ञा मांगी। श्रीकृष्ण चंद्र ने कहा–और जितनी भूमि आवश्यक लगे, समुद्र से कहिए कि उतनी भूमि छोड़ कर हट जाए तब तक के लिए जब तक मैं धरा पर हूँ। यदुवंशियों के बढ़ते परिवार को ध्यान में रख कर वहाँ के वनों को स्वच्छ करके आप नगर निर्माण कर दें। सुरक्षा और सुविधा दोनों का पूरा–पूरा ध्यान आप नगर निर्माण में रखेंगे। विश्वकर्मा ने आज्ञा स्वीकार की–मुझे सेवा का अवसर देकर आपने कृतार्थ किया। मैं अपनी संपूर्ण बुद्धि एवं कला के अनुसार प्रयत्न करूंगा। सफलता तो सदा आपके अनुग्रह से ही जीव को मिलती है। विश्वकर्मा गए। उनका समस्त अनुगतवर्ग उनके समान देव वर्ग ही तो है। विश्वकर्मा ने स्मरण किया और वे असंख्य देव शिल्पी कुशस्थली कानन को स्वच्छ करने लग गए। मानव के लिए देवता अदृश्य हैं। उनसे संपर्क करने के लिए मनुष्य को विशेष प्रयत्न करना पड़ता है, किंतु देवता के लिए दूसरे देवता से संपर्क बनाने में क्या कठिनाई? समुद्र के अधिदेवता ने विश्वकर्मा से श्रीकृष्ण का संदेश सुना। सागर के अधिदेवता बोले–वे क्षीरोदधिशायी प्रभु मेरे मध्य में रहेंगे, यह सौभाग्य मिलेगा मुझे और मैं थोड़ी–सी भूमि मात्र रिक्त करके बड़ भागी बन जाऊँगा? आपका अनुग्रह। आप कोई संकोच न करें स्थान के संबंध में और मेरे भीतर कुछ ऐसी भी सामग्री भी तो है जिसे आप नगर–निर्माण में उपयोग कर सकते हैं? क्यों नहीं है? विश्वकर्मा ने कहा–मूंगे की सुविस्तृत शिलाएं, सुरंग शुक्तियां, मुक्ता, शंख और नाना आकार के मृदुल-कठोर दोनों प्रकार के जलजीवों के देहावशेष। आपके भीतर तो पृथ्वी के वनों से भी बड़े एवं सुरम्य वन हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज