भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
अपूर्ण स्वयंवर
लगता है कि सब नरेश श्रीकृष्ण के भय से कांपने लगे हैं? दूसरों की स्तुति करने का प्रयोजन क्या है? मैं मानता हूँ कि श्रीकृष्ण सनातन पुरुष हैं, नारायण के स्वरूप हैं। उनके समीप गरुड़ की उपस्थिति का दूसरा कोई अर्थ संभव नहीं। इनसे संग्राम हुआ तो इनके चक्र की अग्नि से जल कर हम मरेंगे ही, यह भी सुनिश्चित है। शाल्व निर्भय दो टूक उच्च स्वर में बोल रहा था–लेकिन भय व्यर्थ है। राजकन्या जिसका वरण करेगी, उसकी पत्नी बनेगी। इसमें झगड़े की क्या बात है? महाभाग दन्तवक्र ठीक कहते हैं। इस बार कुण्डिनपुर के अधिपति महाराज भीष्मक बोले– मेरा पुत्र रुक्मी अपने बल के घमण्ड में ही भरा रहता है। वह श्रीकृष्ण के प्रभाव को सह नहीं पाता। अत: कन्या का हरण और संग्राम मुझे निश्चित लगता है। अपने ज्येष्ठ पुत्र को केशव के साथ युद्ध का अवसर मैं कैसे दे सकता हूं? पहले अर्घ्यादि देकर श्रीकृष्ण को शांत करना ही उचित है। आप अकारण अधीर हो रहे हैं। स्वयम्वर का आयोजन करें। स्वयम्वर सभा में श्रीकृष्ण आवेंगे ही नहीं। मगधराज ने हंस कर कहा–स्वयम्वर सभा में मूर्धाभिषिक्त नरेश और उनके युवराज अपने–अपने सिंहासनों पर छत्र धारण करके बैठेंगे? श्रीकृष्ण तो कहीं के नरेश नही हैं। वे क्या सामान्य नागरिक के मंच पर बैठेंगे? नरेशों से नीचे आसन पर बैठने उस सभा में आवेंगे? वे स्वयम्वर सभा में कदापि नहीं आवेंगे। मगधराज की बात सुनकर सभी नरेश प्रसन्न हुए। सबको यह बात तर्क संगत लगी, किंतु महाराज भीष्मक के कई भाई क्रथ और कैशिक, राजाओं की उस सभा से उसी समय उठ गए। वे प्रसिद्ध भगवद् भक्त–उन्हें तो श्रीकृष्णागमन का समाचार मिला तभी से लगता था कि उन पर अनुग्रह करने के लिए ही भगवान यहाँ पधारे हैं। वे दूसरे राजाओं को भी समझाने ही आए थे इस सभा में। अब जरासन्ध की बात सुनकर उन्होंने अपने कर्तव्य का निश्चय कर लिया था। भैया! हम दोनों ने भगवत कृपा से श्रीकृष्ण तत्त्व को समझा है। मार्ग में ही क्रथ ने भाई से कहा–हम दोनों भाई श्रीकृष्ण के अभिषेक का यह सुअवसर क्यों छोड़ दें? उनके अभिषेक के करने से हम सर्वथा निष्पाप हो जाएंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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