भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
जरासन्ध का आक्रमण
श्री बलराम जी ने दाहिना हाथ बढ़ा कर सांवर्तक नाम का अपना हल उठाया और फिर बाएं हाथ से सौनंद मुशल लेकर व अपने रथ पर जा बैठे। श्रीकृष्ण के रथ पर बैठते ही कौमोद की गदा उनके दक्षिण कर में आ गई। उनका सहस्रार महाचक्र घूमने लगा भयंकर घरघराहट के साथ। श्रीकृष्ण आज इसी क्षण से सबके लिए चतुर्भुज हो गए। वैसे मथुरा के लिए अधिकांश लोग तो अपने इन भगवान वासुदेव को प्रारम्भ से ही चतुर्भुज देखते आ रहे हैं। आर्य! नगर वासी, आपके ये आश्रित बहुत भयभीत हैं। इनका भय निवारण अब शीघ्र होना चाहिए। श्रीकृष्ण ने अग्र से अनुरोध पूर्ण स्वर में कहा। कृष्णचंद्र! तुम्हारे आश्रितों की छाया से भी दूर रहता है। श्री बलराम हंस कर बोले– "तुम लीला करना चाहते हो तो मैं सदा तुम्हारे साथ हूँ।" बात स्पष्ट थी। जिसके तनिक–सा भ्रू पर बल देने पर महाप्रलय अनंत-अनंत ब्राह्मांडों को निगल लेता है, वह अपने आश्रितों के भय की चर्चा क्यों करे? वह केवल संकेत कर दे तो उसके ये अग्रज–महाप्रलय में केवल इनकी हूँकार से ब्रह्मांड सूखे गोबर के समान भस्म हो जाता है। मगध राज और उसके साथ की यह सेना– इसके संहार के लिए अस्त्र–शस्त्र की अपेक्षा है इन्हें? लेकिन ये छोटे भाई लीलामय हैं। इस समय से रण क्रीड़ा करना चाहते हैं तो अग्रज को कहाँ आपत्ति है। दोनों भाइयों के रथ बढ़े नगर के राजपथ से दक्षिण की ओर। महाराज उग्रसेन तो पूरी यादववाहिनी साथ भेजना चाहते थे, किंतु श्रीकृष्ण ने रोक दिया–सेना की आवश्यकता नगर में लोगों को शांत अनुशासित बनाए रखने के लिए है। लोग भयभीत होकर इधर उधर भागने न लगें, उन्हें आश्वस्त रखना है। सैनिक शस्त्र सहित राजमार्गों पर सञ्चरण करते रहेंगे तो लोगों का धैर्य बना रहेगा। हमारे साथ थोड़े से चुने हुए रथारोही ही जाएंगे। जो विशाल वाहिनी चढ़ाई करने आ गई है–उससे द्बिगुण सेना जब युद्ध–क्षेत्र में उतारी नहीं जा सकती तो अत्यल्प सेना लेकर सूची व्यूह ही सफल हो सकता है। अधिक सैनिक होंगे तो उनकी सुरक्षा की चिंता हमें सम्पूर्ण शक्ति आक्रमण करने में बाधा देगी। बात उचित हो या न हो, भगवान वासुदेव का आदेश महाराज उग्रसेन के लिए भी सम्मान्य ही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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