भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
जरासन्ध का आक्रमण
जरासन्ध ने मथुरा से कुछ दूरी पर ही रुक कर व्यूह रचना की। उसने साथ आए नरेशों को एकत्र करके आदेश दिये - मद्रराज शल्य, कलिंग राज श्रुतायु, चेकितान, वाह्यीक कश्मीर राज गोनर्द, करूषराज दंतवक्र, पर्वतीय किन्नरराज द्रुम - ये अपनी सेना लेकर मथुरा के पश्चिम द्वार पर आक्रमण करेंगे और सावधान रहेंगे कि उधर से कोई नगर से किसी भी समय, किसी भी वेश में, किसी भी बहाने से निकल न सके। [1] पौरव वेणुदारि, वैदर्भ सोमक, भोजाधिप रुक्मी, मालवराज सूर्पाक्ष, अवन्ति राजकुमार विंद और अनुविंद, छागलि, पुरुमित्र, शतधन्वा, विदूरथ, भूरिश्रवा, त्रिगर्त और पञ्चनद ये उत्तर द्वार को घेर लें। शकुनि-पुत्र उलूक, सव्यसाची एकलव्य, क्षत्रधर्मा, जयद्रथ, उत्तमौजा, कैकय राजकुमार, विदिशा–नरेश वामदेव, सिनीपति सांकृति मथुरा के पूर्वद्वार को लक्ष्य बनावें। मैं स्वयं दरद और चेदिराज शिशुपाल के साथ दक्षिण द्वार की ओर से आक्रमण करता हूँ। सम्पूर्ण नगर को–सभी भवनों को एक ओर से ध्वस्त कर देना है। धूलि में मिला देना है मथुरा को। जरासन्ध ने पूरे आवेश में आदेश दिया–मैं जानता हूँ कि नगर में देव मंदिर हैं, बहुत से अवध्य भी हैं, किंतु इनके विनाश का प्रायश्चित हम पीछे कर लेंगे। मैं अपने जामाता का पूरा प्रतिशोध लूँगा। मथुरा नगर तथा यहाँ रहने वाले किसी का चिह्न मत छोड़िए। कोई दया किसी पर भी नहीं। विनाश–केवल विनाश का महाताण्डव में यहाँ देखना चाहता हूँ। आर्य! जरासन्ध पूरी तेईस अक्षौहिणी सेना एकत्र कर लाया है। अपने अधीनस्थ सब नरेशों को और उनकी सेना को एकत्र करके आया है वह मगधराज। श्री संकर्षण को एक ओर ले गए श्रीकृष्ण चंद्र और उनसे बोले–भूमि का भार ही दूर करने के लिए तो आपका अवतार हुआ है धरा पर। यह तेईस अक्षौहिणी भार तो अभी दूर कर देना, किंतु जरासन्ध अच्छा माध्यम है। उसे छोड़ दिया जाए तो वह इसी प्रकार सैनिक एकत्र करके लाता रहेगा। अत: उसे छोड़ ही देना उचित रहेगा। यह लीजिए! आपका तालध्वज दिव्य रथ और आपके प्रिय आयुध हल मुशल भी आ गए। श्रीकृष्ण चंद्र ने केवल दृष्टि उठा कर गगन की ओर गंभीर भंगी से देखा था। दो प्रकाश पुँज उतरते दीख पड़े थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 16.33
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