भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
उद्धव ब्रज गए
कुछ संदेश–कुछ विशिष्ट प्राणों के लिए संदेश दिए बिना रहा नहीं जा सकता। बहुत संक्षिप्त–उद्धव जितना ग्रहण कर सकें उतने शब्दों से, वैसे ही परोक्ष भाषा के संदेश देने हैं–ये संदेश तो देने ही हैं। उद्धव को बार-बार आदेश दिया–इन संदेशों को ज्यों का त्यों बिना व्याख्या के सुना देना उनको। उद्धव व्रज जा रहे हैं। उन्हें ऐसे ही तो नहीं भेजा जा सकता। उद्धव श्रीकृष्ण के निजी संदेश वाहक होकर जा रहे हैं। उन्हें महाराज उग्रसेन, वसुदेव जी, देवकी जी अथवा माता रोहिणी या श्री बलराम तक से मिल कर नहीं जाना है। किसी दूसरे का कोई संदेश–कोई उपहार किसी के लिए नहीं ले जाना है। श्रीकृष्ण चंद्र भी राज भवन या अपने सदन से कोई उपहार नहीं भेज सकते। ऐसे करने पर पता लगेगा और पता लगेगा तो व्रज को जाते व्यक्ति के लिए उपहार संदेश भेजने की उत्कंठा कम कहाँ हैं उनके सदन के ही लोगों के हृदय में। अपने वस्त्र पहिना दिये उद्धव को। अपने आभूषण, अपनी वनमाला, अपना पटुक, -उद्धव वही श्याम वर्ण, श्रीकृष्ण उन्हेंं अपने कर से, अपने समान वेश मे सज्जित कर दिया और उसी रथ पर बैठाया, वही अश्व जोड़े जिस पर बैठकर वे व्रज से मथुरा आये थे। दूर तक चले गये उद्धव के साथ और जव विदा किया-जाते रथ को देर तक खडे-खडे देखते रहे। देखते रहे व्रज की ओर जाते रथ को। बेसुध से शिथिल पदों ही उस दिन लोटे वे प्रैमेकधाम। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज