भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
गुरु-दक्षिणा
हम गुरु पुत्र को श्री चरणों में उपस्थित कर देंगे! श्रीकृष्ण ने बात पूरी होने से पूर्व महर्षि के पदों में मस्तक रखा और अग्रज के साथ आश्रम से निकले। मथुरा से जो रथ उन्हें ले आया था, बाहर प्रतीक्षा कर रहा था। राज माता राजाधिदेवी, अवन्तिका के नागरिक स्तब्ध खड़े देखते रह गए। मृत पुत्र गुरु दक्षिणा में लाना है और दोनों भाइयों ने क्षणार्ध भी हिचकने या सोचने में नहीं लगाया। बिना किसी से कुछ कहे–बिना किसी की ओर देखे दोनों रथ पर जा बैठे हैं। यह क्या ऐसी गुरु दक्षिणा है कि इसमें कोई कुछ भी सहयोग दे सके। प्रभास! सारथि को आदेश हुआ। रथ तो पूरे वेग से चल पड़ा है। नागरिकों को महर्षि के सम्मुख प्रणत होकर लौटना है। वे लौट चले हैं–अपने लाए उपहार यों ही लिए लौट चले हैं। उनमें दोनों भाइयों की ही चर्चा है–ऐसी गुरु दक्षिणा कोई मानव कैसे दे सकता है? कोई देवता भी साहस न कर सके, किंतु दोनों भाई तो ऐसे गए हैं जैसे प्रभास में समुद्र तट पर बैठे गुरु पुत्र को रथ पर बैठा लाना है। सागर तट पर ये रथ से उतर कर नील–पीतवसन गौर–श्याम जो बैठ गए हैं, इन दुरंत विक्रम को पहचानने में समुद्र के अधिदेवता क्या भूल कर सकते हैं? क्या हुआ कि अब इनका तापसवेश जटा जूट और बल्कल वस्त्र नहीं है, क्या हुआ जो कपि सेना साथ नहीं है और धनुष बाण तथा त्रोण नहीं लाए हैं ये। इन्हें क्या सहायक अथवा अस्त्र की आवश्यकता होती है? ये एक तृण उठा लेंगे और वही महा अमोघ अस्त्र बन जाएगा। त्रेता में इन्होंने केवल बाण चढ़ाया था धनुष पर–उस रोष का संकल्प अब भी समुद्र को वाडवाग्नि बन कर जलाता रहता है। इस बार तो गौर कुमार अग्रज होकर आए हैं। ये तेजोधाम–त्रेता में इनका अनुरोध अग्रज ने एक बार टाल दिया था, किंतु इस बार ये आदेश दे तो? इस बार ये स्वयं उठ खड़े हों–अनुज इन्हें वास्ति तो नहीं कर सकते। सागर में साहस नहीं है इनकी उपेक्षा करने का। इनके रोष की एक झांकी त्रेता में मिल चुकी। इनकी कृपा की याचना ही की जानी चाहिए। अतल गम्भीर नील वर्ण, तरंगोंज्वल वसन, मौक्तिकाभरण महासागर मूर्तिमान हो गया। उत्ताल तरंग उठी और राम–श्याम के चरणार्द्र हो गए। उन पर राशि–राशि मोती बिखर गए। लेकिन दोनों भाइयों की दृष्टि महासागर पर है। बद्धाञ्जलि समुद्राधिदेवता सम्मुख उपस्थित हुए–देव ……। तुमने ग्रहण के समय स्नानार्थ आए महर्षि सान्दीपनि के बालक पुत्र का अपहरण किया। श्रीकृष्ण ने सागर को स्तवन का–कुछ कहने का अवसर नहीं दिया। वे भर्त्सना कर रहे हैं–तुम्हारी उर्मियों ने उस अबोध शिशु को अपना ग्रास बनाया। तुम्हें इसलिए इतना महान बनाया गया है कि तुम इतनी क्षुद्रता करो? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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