भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
प्रत्यावर्तन
इनके सुकुमार अंगों पर नील पीत कौशेय वस्त्र, कटि में रत्न मेखला, स्कंधों पर पटुके, कण्ठ में रत्न हार, वृक्षों पर झूलती वन माला, चंदन चर्चित अंग, तिलकाकिंत भाल, तैल सिंचित सुमन सज्जित अलकें–इस झांकी की कल्पना में ही सब मग्न हो रहे हैं। प्रात: सूर्योपस्थान करके दोनों भाई दंतधावन करेंगे।' श्री दाम ने उदुम्बर की कोमल शाखा ला रखी है। कल इनकी अलकें सुगंधित कटु तैल से सिंचित होंगी।' गुरु पत्नी अपनी प्रस्तुति में हैं। हम इनकी अलकों में पुष्प ग्रंथन करेंगे। सहाध्यायियों की कला को भी तो सार्थक होना है। यवचूर्ण से उद्धवर्तन, उष्णोदक–स्नान, मलयज–लेपन, हस्तोपलेपन, प्राणायाम और तिलक।' गुरु पत्नी ने अनेक ब्रह्मचारियों का समावर्तन संस्कार कराया है–बड़े वात्सल्य से कराया है, किंतु इस राम और कृष्ण ने तो उनके हृदय को जीत ही लिया है। इनकी सेवा, विनय, सुषमा की कहीं तुलना है और महर्षि कहते हैं–ये परम पुरुष हैं। गुरु देव मंत्र पाठ करेंगे। हम सब सहायता करेंगे। देवार्चन, हवन होगा। दोनों भाई सहस्रधाराओं से स्नान करके मेखला विसर्जन करेंगे और महद्वास धारण करेंगे। व्रत समाप्त हो जाएगा। छात्रों ने सब प्रकार की सामग्री प्रस्तुत कर ली है। ब्रह्म मुहूर्त में ही महर्षि अपने आसन से उठ गए। गुरु पत्नी ने संभवत: रात्रि विश्राम किया ही नहीं। समस्त अंतेवासी संक्षिप्त नित्यकर्म करके व्यस्त हो गए। पुष्प माल्य, वंदनवार, सुमन, अंकुर, दल, कुश–सब सामग्री एकत्र की उन्होंने। गोमयोपलिप्त, विविध मंडलों से मंडित, कदलीस्तंभ, पुष्प किसलयादि से सज्जित हुई आश्रम भूमि। लता तरू, भूमि स्वत: पुष्पित सज्जित हो उठी। सजह विकच सुमन स्तबक, आनंदोन्मत्त गुञ्जार करती भृंगावली, नृत्य करते मयूर, पक्षियों का कलरव–यह शोभा साम्राज्यों के श्रृंगार में भी कहाँ सुलभ है। महाकाल के मंदिर में अखंड दुग्धाभिषेक चल रहा है रुद्रार्चन के साथ। गूँज रहा है आश्रम शंखनाद एवं श्रुतिमंत्रों के सस्वर पाठ से। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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