भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
गुरु सेवा
गुरु पत्नी बहुत आग्रह करके दोनों को कुछ फल प्रात: खिला पाती हैं। जब ये उनकी चरण वंदना करने पहुँचते हैं। फिर तो ये लग जाएंगे अध्ययन या सेवा में। इनको देखते रहना–बस यही कार्य रह गया है। महर्षि परम तापस हैं। उनके लिए आज कल नीवार रंधन भी नहीं करना पड़ता। राम और कृष्ण के लाए अद्भुत स्वादिष्ट फलों से तो आश्रम में आए पशु पक्षी तक तृप्त हो जाते हैं। कोई सेवा मात:? दोनों मस्तक झुकाए, भूमि में दृष्टि किए पता नहीं कितनी बार पूछते हैं। कहने को कुछ अवकाश भी मिले। ये तो कोई न कोई स्वयं ही ढूँढ लेंगे और उसे करने में व्यस्त हो जाएंगे। गुरु पत्नी इन्हें एकटक देखती रह जाती हैं। इन्हें रोक भी नहीं पाती वे। ये सुकुमार अरुण कर क्या सेवा के लिए हैं? सहपाठी इनके कर पकड़ लेते हैं अनेक बार। वे कितना चाहते हैं कि ये दोनों भाई श्रम न करें। प्रतिभावान छात्र सहपाठियों से सदा सम्मान पाते हैं सबके, किंतु इनकी तत्परता–पता नहीं ये दोनों कब सब कार्य कर लेते हैं। आश्रम लिपा पुता स्वच्छ, उटक गौशाला स्वच्छ मिलेगी, जब तक कोई दूसरा छात्र इस कार्य को पहुँचे। गुरु पत्नी पूछने पर कह देंगी–जल राम रख गया। पुष्प और फल भी ले आया। समित, कुश, दुर्वांकुर कृष्ण ने संग्रह कर दिए। जिस कार्य को जाओ, वहाँ देखो-राम या कृष्ण ने उसे पहले ही कर दिया है। गुरुदेव की, गुरु गृह की, गायों की कोई सेवा तो इनसे बचती? ये दोनों तो सहाध्यायियों की बलात सेवा कर लेते हैं। उनके आसन यथास्थान बिछ गए, समिधाएं रख दीं, सुमन पत्र पुटकों में सजा दिए। सूखे बल्कल यथास्थान उठा कर धर दिए। तुम दोनों भाई कम से कम हम पर तो कृपा करो। हम ब्रह्मचारियों को स्वयं अपना सब कार्य करना चाहिए। सहाध्यायी अनुरोध करते हैं। गुरु सेवा, गुरु गृह की सेवा तो प्रयत्न करके भी इनसे ली नहीं जा पाती। ब्रह्मचारी दूसरे से सेवा ले, यह तो अपराध है। राम हंस कर टाल देता है। कृष्ण हँस देगा। सब कार्य कर डालेगा और मना करने पर हँसेगा। बहुत कहो तो कह देगा। आप हमसे पहले आए अत: हमारे बड़े हैं। हमारे लिए आप सेव्य हैं। कृष्णचंद्र कह देता है–मैं यहाँ कोई सेवा किसी की कर पाता हूँ। कुछ सेवा बने–तो भगवती वीणापाणि प्रसन्न हों। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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