भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
गुरुकुल पहुँचे
महर्षि शान्त, निष्कम्प खड़े हैं दोनों भाइयोंं को हृदय से लगाये। उनका रोम-रोम उत्थित हो रहा है। कण्ठ गदगद है। ‘ये सौन्दर्यघन हमारे साथ अध्ययन करेंगे।’ आश्रम के अन्तेवासी अपलक लोचनों से समीप खड़े देख रहे हैं। ‘आज ही शुभ मुहूर्त है!’ महर्षि ने स्वस्थ होते ही छात्रों को संकेत किया। ज्योतिर्विद्या के परमाचार्य महर्षि गर्ग का शोधित मुहूर्त है यह। इससे उत्तम मुहूर्त कहाँ मिलना है। ये राम आये हैं पढ़ने, कृष्ण आये हैं अध्ययन करने–मुहूर्त अब न आवे तो कब आवेगा? आज ही इनका वेदाध्ययन प्रारम्भ हो जायेगा।’ अतिथि के आने पर अनाध्याय होता है, पर राम-कृष्ण तो अन्तेवासी होकर आये हैं। छात्रों के अभ्यस्त कर लग गये हैं प्रस्तुति में। आश्रम उपलिप्त हुआ पुन:। राम-श्याम संध्या-तर्पण में लगे स्नान करके। उन्हें अभी देवार्चन करना है, हवन करना है। हवन के पश्चात ही गुरुदेव वेदाध्ययन प्रारम्भ करेंगे। पुष्प, फल, दुर्वांकर, तुलसी, विल्वपत्र, समित, कुश आदि सभी एकत्र करना है। छात्र लग गये हैं बहुत उत्साहपूर्वक। हविष्य प्रस्तुत करना है। माल्य-ग्रन्थन करना है। वेदियों पर देवताओं के मण्डल बनाने हैं। सब में अभ्यस्त कर जुट गये हैं। राम और श्याम आज ही आये हैं। क्या हुआ कि वे साधारण आने वाले नूतन ब्रह्मचारी से वय में पर्याप्त बड़े हैं। वैसे पाँच से सात वर्ष के बालक गुरु-आश्रम आया करते हैं। ये कई वर्ष पूर्व आये छात्रों के समव्यस्क हैं; किन्तु हैं तो अपरिचित ही यहाँ के स्थलों से, नियमों से। सभी प्रयत्न में हैं कि इन्हें शीघ्र प्रसन्न कर लें। इनसे मित्रता स्थापित कर लें दूसरों से पूर्व। इनको उचित कार्य समझाने हैं। आवश्यक सामग्रियाँ देनी हैं। स्थानों का परिचय कराना है। अपना परिचय देना है इन्हें। लेकिन आज तो गुरुदेव का वात्सल्य उमड़ उठा है। वे स्वयं इनकी सुविधाओं के आयोजन में लगे हैं। इन्हें कहाँ स्नान करना है, शिप्रा में कहाँ जल कैसा है, तर्पण कहाँ करना है, कौन से पुष्प या दल किस कार्य में आवेंगे, यह सब स्वयं गुरुदेव समझाने-दिखलाने में लग गये हैं। वे स्वयं सब बतला देना चाहते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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