भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
मल्ल-युद्ध
‘आगे गायों का अपार यूथ और पीछे अधरों पर मुरली धरे उसमें मादक स्वर फूँकते, मत्तगयन्द जैसे झूमते, इधर-उधर देखते, मुस्कराते जाते ये अपने इन सखाओं के साथ प्रात: वन में जाते और सायंकाल लौटते।’ ध्यानमग्न कोई बोल रही है– ‘इसका यह स्मित शोभितानन! धन्य हैं जो घर का कार्य जहाँ का तहां पटककर दौड़ पड़ती हैं और गवाक्षों से अपलक-लोचन इनकी झाँकी करती हैं।’ ‘गोपियों का सौभाग्य! किन्तु हाय, हमें यहाँ इन्हें इस रूप में देखना था।’ लगता है हृदय फटा जा रहा है– ‘इन क्रूर दानवों से उलझें, थकते जा रहे ये सौन्दर्यसिन्धु।’ गोप फटे-फटे से नेत्रों से देख रहे हैं। श्रीव्रजपति का मुख विवर्ण हो गया है। ‘कंस तनिक बोलते ही पता नहीं क्या करे। बालकों का क्या अमंगल करे’ इस भय से वे शान्त बैठे हैं। बस बैठे हैं मूर्तियों के समान। गोपकुमार उठ खड़े हुए हैं सबके सब। सबने अलकें समेट ली हैं। सबने पटुके कटि में कस लिये हैं। कभी चंचल हो उठते हैं, कभी सन्न से हो जाते हैं। कभी इनके मुख खिल उठते हैं, कभी पीताभ हो जाते हैं। इधर-उधर झुककर झांकते हैं। इनका सखा लड़ रहा है। इनकी दृष्टि श्याम पर लगी है। ‘दाऊ दादा की चिन्ता नहीं, किन्तु कन्हाई लड़ रहा है राक्षस से।’ कृष्णचन्द्र नीचे आते हैं तो ये अलकें समटने लगते हैं। अखाड़े में कूदने को उतावले हो उठते हैं। ओष्ठ फड़कते हैं। मुट्ठियाँ बंध जाती हैं। मुख अरुण हो उठे हैं। सुबल, भद्र, बरुथप ही नहीं; अंशु, तेजस्वी, तोक जैसे नन्हें बालक तक अधीर हो उठे हैं श्याम की सहायता करने को। ‘बहुत देर से कन्हाई लड़ रहा है।’ सखाओं के धैर्य की सीमा बहुत छोटी है– ‘वह थकने लगा है। भद्र अब और नहीं रुक सकेगा। वह कूदना ही चाहता है।’ ‘तनिक रुको!’ श्याम ने देख लिया मित्रों की ओर। मुस्कराते नेत्रों की भाषा उसके सखा समझते हैं; किन्तु अब उन्हें देर तक नहीं रोका जा सकता। यह क्रीड़ा बहुत हो चुकी। चाणूर और मुष्टिक की बुरी दशा है। दोनों नहीं समझ पाते कि उनके प्रतिद्वन्द्वी वज्र से बने हैं या उससे भी कठोर धातु से। उनके अंग-अंग फटने लगे हैं। बार-बार मूर्च्छित होने से अपने को बचाना पड़ता है उन्हें। जब कृष्ण छाती से दबाते हैं, चाणूर की पसलियाँ चरमरा उठती हैं। जब थाप देते हैं, लगता है मुदगर का भरपूर हाथ पड़ गया। वह बार-बार भूमि पर गिरता है; किन्तु कृष्ण तो घुटने से ऐसा दबाते हैं कि मेरुदण्ड टूटता जान पड़ता है। वह उठता है, छूटना चाहता है, पर छूट नहीं पाता। गिरता है तो पूरी श्वास भी नहीं ली जा पाती है। वह हाँफ रहा है और हाँफ रहा है मुष्टिक भी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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