भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
मल्ल-युद्ध
कंस तो क्रूर है ही। ये मल्ल हृदयहीन राक्षस हैं; लेकिन सब सभासद क्यों चुप हैं? ये बोलने का साहस क्यों नहीं करते?’ स्त्रियाँ परस्पर बोलने लगी थीं– ‘यदि बोलने का साहस नहीं था तो यहाँ आये ही क्यों और अब क्यों उठ नहीं जाते? जहाँ अधर्म होता हो, वहाँ एक क्षण भी नहीं रुकना चाहिए। इस पूरे समाज को अधर्म का उत्तरदायी होना पड़ेगा, क्योंकि इनके देखते यहाँ विषम बलवानों को लड़ाया जा रहा है।’ ‘समझदार पुरुष ऐसी सभाओं में जाते ही नहीं।’ एक वृद्धा ने कहा– ‘क्योंकि अधर्म का समर्थन करने से अथवा अधर्म होते देखकर भी चुप रह जाने से मनुष्य पाप का भागीदार बन जाता है।’ ‘अरी, शत्रु के चारों ओर उछलते, बल लगाते श्रीकृष्णचन्द्र का मुख तो देखो!’ किसी तरुणी ने कहा– ‘स्वेद की बूँदे झलमला आयी हैं और अरुणाभ हो उठा है यह परमसुन्दर कमलमुख।’ ‘तुम राम का मुख नहीं देखती हो।’ दूसरी बोली– ‘कितना लाल तमतमाया मुख है तप्तताम्र जैसा। नेत्र लाल-लाल हो उठे हैं। मुष्टि के प्रति अमर्ष भरा यह हास्य! अकल्पनीय शोभा है इस श्रीमुख की।’ ‘धन्य है व्रजभूमि! ये परमपुरुष वहाँ इस मानववेश में छिपे, वनधातुओं के चित्रों से अंग सजाये, वनपुष्पों की माला पहने, वंशी बजाते, गायें चराते घूमते हैं अपने इन श्रीचरणों से।’ भक्तहृदय पुलकित हो रहे हैं– ‘ये श्रीचरण भगवान शंकर और भगवती श्री के द्वारा अर्चित–इनसे अंकित होती है व्रजभूमि।’ ‘पता नहीं गोपियों ने पूर्वजन्म में कितना तप, कितना भजन किया होगा कि वे इन त्रैलोक्य मोहन को नित्य देखती हैं।’ नारियों का अन्त:करण उनके ही अनुरूप है– ‘त्रिभुवन में दूसरा सम्भव नहीं, ऐसा यह लावण्यसार रूप, यह ऐश्वर्य-यश-शोभा का एकमात्र धाम श्रीअंग, इस नित्यनवीन दुष्प्राप्य झांकी को नेत्रपुटों से पान करने का सौभाग्य मिला गोपकुमारियों को।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज