भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
दर्जी की कला कृतार्थ हुई
गुणक सावधान हुआ तो और चकित हुआ। उसने सुना है कि कोई स्पर्शमणि[1] होता है। उससे लोहे का स्पर्श हो जाये तो लोहा स्वर्ण हो जाता है; किन्तु वे नीलसुन्दर कैसे मणि थे? उनके स्पर्श से क्या स्वयं गुणक स्पर्शमणि हो गया है? वह जिधर देखता है–जिस पदार्थ पर उसकी दृष्टि जाती है, वह धातु का बना हो या काष्ट का, स्वर्ण बन जाता है। उसकी दुकान के सब उपकरण स्वर्ण के हो गये हैं। केवल कैंची और थोड़ी सुइयां स्वर्ण की नहीं हुई। इसका अर्थ है कि उसे सम्पत्ति-ऐश्वर्य दिया गया; किन्तु उसकी कला उसके समीप सुरक्षित है। गुणक के नेत्र से अश्रु बह रहे हैं। वह गद्गद् रोमांचित बैठ गया है अपनी दुकान में। उसके पास काम है–वस्त्र हैं राजा के और राजसेवक आवेगा सांयकाल उन्हें लेने; किन्तु गुणक को अब यह कुछ स्मरण नहीं। वह उनके नीलसुन्दर के ध्यान में तन्मय है। उनके हाथ, उसकी कला अब उनके और उनके जनों के लिए सुरक्षित है। अब वह किसी अन्य के वस्त्र नहीं छुएगा। एक टाँका भी नहीं लगायेगा अन्य के वस्त्रों में। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पारस पत्थर
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