भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह चक्र पृ. 136

भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'

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अक्रूर ब्रज गये


आप मेरी मैत्री का निर्वाह करेंगे– ऐसा मुझे भरोसा है। मेरे कार्य की सिद्धि सर्वथा आप पर निर्भर है।’ अक्रूर जी बोले नहीं। उन्‍होंने केवल कंस की ओर देखा इस प्रकार मानो वे कार्य जानना चाहते हैं। ‘नन्‍दव्रज में वसुदेव के पुत्र राम और कृष्‍ण हैं। आप कल प्रात: मेरे रथ से चले जायें वहाँ और उन दोनों को अविलम्‍ब यहाँ ले आवें। परसों वे यहाँ आ जायें, ऐसा करें।’

अक्रूरजी ने फिर कंस की ओर देखा। अन्‍तत: उन्‍हें यह तो जानना ही चाहिये कि क्‍या कहकर वे उन बालकों को यहाँ ले आवेंगे।

‘आप जानते ही हैं कि विष्‍णु के आश्रित रहने वाले देवताओं ने उन दोनों के द्वारा मेरी मृत्‍यु निश्‍चित की है।’ कंस ने अक्रूर पर अपना पूरा विश्वास दिखलाते हुए उन्‍हें अपनी पूरी योजना सुना दी– ‘वे दोनों यहाँ आ जायेंगे तो मेरा महागज कुवलयापीड काल के ही समान है, उससे मरवा दूँगा दोनों को। यदि उससे किसी प्रकार बच गये तो चाणूर, मुष्‍टिक, शल, तोशलादि मल्‍ल हैं; ये मार डालेंगे उन दोनों को।’

‘देखिये अक्रूर जी! वे दोनों मर जायेंगे तो उनके दु:ख से वसुदेवादि स्‍वत: अधमरे हो जायेंगे। वसुदेव, उनके सब भाई, भोज-वृष्‍णि-अन्‍धकादि वंश के उनके समर्थक तथा नन्‍दादि गोपों को मैं वहीं रंगशाला में ही मार दूँगा।’ कंस ने मुट्ठियाँ बाँध ली– ‘मेरा पिता उग्रसेन वृद्ध हो गया; किन्‍तु राज्‍यासन का लोभ उसका गया नहीं। उसे और उसके भाई शूरसेन को भी मार दू्ंगा। ‘केवल उस नन्‍दपुत्र कहे जाने वाले कृष्‍ण से मुझे भय है। उसने भी मेरे समान इन्‍द्र को पराजित किया है। इन्‍द्र-यमादि को मैं पुन: पराजित कर लूंगा। ब्रह्मा और शिव तपस्‍वी हैं। विष्‍णु सागर में डूबे रहते हैं। इनसे मेरा कोई प्रयोजन नहीं है।’

‘आप तो मेरे मित्र हैं।’ कंस ने अक्रूरजी के कन्‍धे पर हाथ रखा– ‘इन सबको मार दूँ तो यह पृथ्‍वी का राज्‍य मेरे लिऐ निष्‍कण्‍टक हो जायेगा; क्‍योंकि मगधराज जरासन्‍ध मेरे श्वसुर हैं। वानर श्रेष्‍ठ द्विविद मेरे प्‍यारे सखा हैं। शम्‍बर, नरक, बाण भी मुझसे ही मैत्री रखते हैं। इन सबको साथ लेकर पृथ्‍वी के देवपक्षीय सभी नरेशों का हम संहार कर देंगे। सम्‍पूर्ण धरा का स्‍थायी आधिपत्‍य भोगेंगे हम। पृथ्‍वी ही क्‍यों त्रिलोकी का राज्य हमारा हो जायेगा। इन्‍द्र सहित देवताओं को बांध लेंगे। कुबेर को मेरु पर्वत की दुर्गम कन्‍दरा में फेंक देंगे।’

‘राजन्! आपने विचार तो बहुत दूर तक सोचकर किया है–अपने अमंगल को, अहित को मिटा देने का आपका निर्णय समझदारी का है; किन्‍तु सफलता-असफलता में समान भाव रखकर प्रयत्‍न करना चाहिये। सफलता सदा दैव पर निर्भर रहती है।’ अक्रूर शान्‍त स्‍वर से बोले–‘मनुष्‍य बड़ी-बड़ी अभिलाषायें कर लेता है, पर भूल जाता है कि वह भाग्‍य के हाथ की कठपुतली है। अत: उसे हर्ष अथवा शोक भोगना पड़ता है।’

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भगवान वासुदेव
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. मंगलाचरण 1
2. अपनी बात 2
3. द्वितीय संस्‍करण के सम्‍बन्‍ध में 5
4. उपक्रम 6
5. सगुण तत्त्व 9
6. साकार तत्त्व 14
7. अवतार तत्त्व 19
8. दशावतार 22
9. भूभार क्‍या ? 26
10. अवतार के लिए अनुरोध 29
11. मथुरापुरी 33
12. वृष्णि वंश 36
13. यादव महराज उग्रसेन 38
14. युवराज कंस 40
15. वसुदेव ‘आनकदुन्‍दुभि’ 46
16. माता देवकी 49
17. विवाह 52
18. आकाशवाणी और... 55
19. कंस का प्रयत्‍न 59
20. देवकी का प्रथम गर्भ 62
21. कंस की कृपा 65
22. देवर्षि आये 68
23. शिशु हत्‍या 71
24. महाराज उग्रसेन भी बन्‍दी बने 72
25. कंस का कारागार 74
26. महाराज कंस 77
27. निर्मम हत्‍यायें 79
28. रोहिणीजी ब्रज गयीं 81
29. गर्भ संकषर्ण 86
30. अष्‍टम गर्भ 87
31. कंस आतंकग्रस्‍त 90
32. भाद्र कृष्‍ण अष्‍टमी 92
33. श्रीकृष्‍णावतार 95
34. वासुदेव गोकुल गये 98
35. योगमाया 102
36. कारागार से त्राण 106
37. कुटिल मंत्रणा 108
38. पूतना गयी 110
39. व्रजपति-मिलन 113
40. अटके प्राण 116
41. श्रीगर्गाचार्य गोकुल गये 119
42. सुभद्रा–जन्‍म 121
43. क्रूरता कटती गयी 124
44. फिर आये देवर्षि 128
45. फिर कारागार 130
46. केशी गया 132
47. अक्रूर ब्रज गये 134
48. अक्रूर लौट आये 138
49. राम-श्‍याम आये 141
50. नगर दर्शन 144
51. धोबी मरा 146
52. दर्जी की कला कृतार्थ हुई 149
53. धन्‍य माली सुदामा 152
54. कुब्‍जा सुन्‍दरी 156
55. धनुर्भंग 159
56. जय जननायक 165
57. कंस का भयोन्‍माद 167
58. शिवरात्रि का सबेरा 169
59. गज–वध 172
60. रंगशाला में 175
61. मल्‍ल-युद्ध 178
62. कंसारि 184
63. यादवेन्‍द्र उग्रसेन 187
64. पितृ-मिलन 190
65. वैर–बीज 193
66. मथुरा सुख बसी 196
67. ब्रजराज विदा हुए 198
68. माता रोहिणी आयीं 202
69. उपनयन 205
70. गुरुकुल पहुँचे 211
71. शिक्षण-प्रशिक्षण 214
72. गुरु सेवा 219
73. प्रत्यावर्तन 224
74. गुरु-दक्षिणा 227
75. कुब्जा की प्रतीक्षा 232
76. सैरन्ध्री सुंदरी 235
77. उद्धव ब्रज गए 237
78. उद्धव लौट आए ब्रज से 241
79. वसुदेव जी की सन्तति 243
80. अक्रूर के भवन में 245
81. जरासन्ध का आक्रमण 248
82. कोल-वध 254
83. युद्ध ! युद्ध ! युद्ध ! 258
84. चक्र–मौशल युद्ध 261
85. शृगाल वासुदेव 267
86. श्री बलराम विवाह 271
87. अपूर्ण स्वयंवर 275
88. द्वारिकापुरी 282
89. कालयवन 287
90. मुचुकुन्द 292
91. श्रीरणछोड़राय 296
92. उपसंहार 302
93. अंतिम पृष्ठ 305

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