भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
क्रूरता कटती गयी
कंस ने एक प्रयत्न और किया। अरिष्ट को भेजा उसने। अरिष्ट वृषभाकार है। गोप उसे मारने में हिचकेंगे। वैसे कंस स्वयं हिचक रहा था। जिसने वत्सासुर से असुर-विनाश प्रारम्भ किया, वह अरिष्ट को पहचानने में चूक जायेगा? अरिष्ट से देवता भी काँपते हैं। वह और केशी-केशी कंस का प्रधान सेनापति है-अन्तिम आशा है; किन्तु अरिष्ट केशी से दुर्बल नहीं है। वसुदेव जी ने सुना। अरिष्ट-नाश के लिए आराधना ही तो की जा सकती है। आराधना ही अवलम्ब है उनका। वे सुनते ही आराधना में लग गये थे और उनकी आराधना कभी असफल नहीं हुई। उसी दिन उन्होंने सुन लिया कि व्रज में सांयकाल अरिष्ट नष्ट हो गया। कृष्ण का स्मरण सबके अरिष्ट ध्वंस कर देता है, उन तक जाकर अरिष्ट बचा रह सकता था? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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