भगवद्गीता -राधाकृष्णन पृ. 71

भगवद्गीता -डॉ. सर्वेपल्लि राधाकृष्णन

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अध्याय -1
अर्जुन की दुविधा और विषाद

24.एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत।
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तम्॥

हे भारत (धृतराष्ट्र), गुडाकेश (अर्जुन) के ऐसा कहने पर हषीकेश (कृष्ण) ने उस श्रेष्ठ रथ को दोनों सेनाओं के बीच में ले जाकर खड़ा कर दिया।

25.भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम् ।
डवाच पार्थ पश्येतान्समवेतान्कुरूनिति ॥

उसने भीष्म, द्रोण और सब राजाओं के सम्मुख खड़े होकर कहा: हे पार्थ (अर्जुन), इन सब इकट्ठे खड़े हुए कुरुओं को देखो।

26.तत्रापश्यत् स्थितान्पार्थः पितृनथ पितामहान् ।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्सखींस्तथा॥

वहाँ अर्जुन ने देखा कि उसके पिता, दादा, गुरु, मामा, भाई, पुत्र और पौत्र तथा मित्र भी खडे़ हुए थे।

27.श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि।
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान्॥

और उन दोनों सेनाओं में श्वसुर और मित्र भी खडे़ थे। जब कुन्ती के पुत्र अर्जुन ने इन सब इष्ट-बन्धुओं को इस प्रकार खडे़ देखा तो,

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भगवद्गीता -राधाकृष्णन
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
परिचय 1
1. अर्जुन की दुविधा और विषाद 63
2. सांख्य-सिद्धान्त और योग का अभ्यास 79
3. कर्मयोग या कार्य की पद्धति 107
4. ज्ञानमार्ग 124
5. सच्चा संन्यास 143
6. सच्चा योग 152
7. ईश्वर और जगत 168
8. विश्व के विकास का क्रम 176
9. भगवान अपनी सृष्टि से बड़ा है 181
10. परमात्मा सबका मूल है; उसे जान लेना सब-कुछ जान लेना है 192
11. भगवान का दिव्य रूपान्तर 200
12. व्यक्तिक भगवान की पूजा परब्रह्म की उपासना की अपेक्षा 211
13. शरीर क्षेत्र है, आत्मा क्षेत्रज्ञ है; और इन दोनों में अन्तर 215
14. सब वस्तुओं और प्राणियों का रहस्यमय जनक 222
15. जीवन का वृक्ष 227
16. दैवीय और आसुरीय मन का स्वभाव 231
17. धार्मिक तत्त्व पर लागू किए गए तीनों गुण 235
18. निष्कर्ष 239
19. अंतिम पृष्ठ 254

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