भगवद्गीता -डॉ. सर्वेपल्लि राधाकृष्णन
अध्याय-18
निष्कर्ष मानवीय स्वतन्त्रता के सिद्धान्त और पूर्व नियतवाद(पूर्वनिर्णयन) के सिद्धान्त के मध्य संघर्ष के कारण यूरोप और भारत में काफी वाद-विवाद हुआ है। टाॅमस ऐक्वाइनास का मत है कि संकल्प-शक्ति और मानवीय प्रयत्न की स्वतन्त्रता का मनुष्य के उद्धार में बहुत बड़ा हाथ होता है, यद्यपि स्वयं संकल्प-शक्ति को भी परमात्मा की कृपा के समर्थन की आवश्यकता पड़ सकती है। ’’पूर्वनिर्णयनवादियों को भी अच्छे कार्यों और प्रार्थना के लिए यत्न करना होगा; क्योंकि इन उपयों के द्वारा पूर्वविधान को आगे बढ़ाने में सहायक तो हो सकते हैं, परन्तु वे उसमें बाधा नहीं डाल सकते। ’’[1] मनुष्य इस बात के लिए स्वतन्त्र है कि वह परमात्मा द्वारा प्रस्तुत की गई उसकी कृपा को अस्वीकार कर दे। बोनावेन्त्यूरा का विचार है कि परमात्मा मनुष्यों पर कृपा करना चाहता है, परन्तु केवल उन लोगों पर, जो अपने आचरण द्वारा अपने-आप को उस कृपा को ग्रहण करने के लिए तैयार करते हैं। डन्स स्कौटस की दृष्टि में, क्योंकि इच्छा की स्वतन्त्रता परमात्मा का आदेश है, इसलिए परमात्मा भी मनुष्य के निश्चय पर कोई सीधा प्रभाव नहीं डाल सकता। मनुष्य चाहे तो परमात्मा कीकृपा के साथ सहयोग कर सकता है, पर वह चाहे तो सहायोग से विरत भी रह सकता है।आध्यात्मिक नेता हम पर शारीरिक हिंसा द्वारा, चमत्कार-प्रदर्शन द्वारा या जादू द्वारा प्रभाव नहीं डालते। सच्चा गुरु मिथ्या दायित्व नहीं लेता। 64.सर्वगुह्यतमं भूयः श्रृणु मे परमं वचः। अब तू मेरे सर्वोच्च वचनों को सुन, जो सबसे अधिक रहस्यपूर्ण है। क्योंकि तू मेरा प्रिय है, इसलिए मैं तुझे यह बतलाऊंगा कि तेरे लिए क्या वस्तु हितकर है। 65.मन्मना भव भद्धक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु। अपने मन को मुझमें लगा; मेरा भक्त बन; मेरे लिए यज्ञ कर; मुझे प्रमाण कर। इस प्रकार तू मुझ तक पहुँच जाएगा। मैं तुझे सचमुच इस बात का वचन देता हूं, क्योंकि तू मुझे प्रिय है।जिस सर्वोच्च उपदेश के साथ गुरु ने नौवें अध्याय (34) को समाप्त किया था, उसी चरम रहस्य को यहाँ फिर दुहराया गया है।विचार, पूजा, यज्ञ और श्रद्धा इन सबको परमात्मा की ओर लगाया जाना चाहिए। हमें परमात्मा के सम्मुख एक सरल, अविराम और विश्वासपूर्ण आत्मसमर्पण के साथ पहुँचना चाहिए। हमें अपने-आप को इस ईसाई पद के शब्दों में उसके सम्मुख खोल देना चाहिए: ’’हे प्रिय, मैं अपने-आप को तेरे हाथों में सौपंता हूं, सदा तेरा, केवल तेरा बनने के लिए।’’ परमात्मा हमें वापस अपने पास ले आने के लिए अपनी दयालुता, प्रेम और उत्सुकता के अपने स्वभाव को प्रकट करता है। वह इस बात की प्रतीक्षा कर रहा है कि यदि हम केवल अपने हृदय उसके लिए खोल दें, तो वह उनमें प्रवेश कर जाए और हम पर अधिकार कर ले। हमारा आत्मिक जीवन हमारे उस तक जाने पर भी उतना ही निर्भर है, जितना कि उसके हम तक आने पर। यह केवल हमारा परमात्मा तक आरोहण नहीं, अपितु परमात्मा का मनुष्य तक अवरोहण भी है। कवि ठाकुर के शब्दों पर ध्यान दें: ’’तुमने उसकी निःशब्द पदचाप नहीं सुनी? वह आता है, आता है, नित्य आता है।’’ परमात्मा का प्रेम हमारी आत्माओं पर दबाव डाल रहा है और यदि हम अपने-आप को उसके अनवरत आगमन के लिए खोल दें, तो वह हमारी आत्मा मे प्रविष्ट हो जाएगा, वह हमारे स्वभाव को स्वच्छ कर देगा और उसे मुक्त कर देगा और हमें दमकते हुए प्रकाश की भाँति चमका देगा। परमात्मा, जो सहायता के लिए सदा उद्यत है, केवल इस बात की प्रतीक्षा कर रहा है कि हम उससे विश्वासपूर्ण सहायता के लिए अनुरोध करें।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सम्मा थियोलोजिका। अंगे्रजी अनुवाद इंगलिश डोमीनिकन प्रौविन्स के पादरियों द्वारा। द्वितीय संस्करण (1929), खण्ड 1, क्यू0 23, अनुच्छेद 8
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