भगवद्गीता -राधाकृष्णन पृ. 122

भगवद्गीता -डॉ. सर्वेपल्लि राधाकृष्णन

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अध्याय-3
कर्मयोग या कार्य की पद्धति

  
40.इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिरस्याधिष्ठानमुच्यते ।
एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम् ॥

इन्द्रियां, मन और बुद्धि इसका रहने का स्थान कही जाती है। इनके द्वारा ज्ञान को आवृत करके यह शरीरधारी (आत्मा) को पथभ्रान्त कर देता है।

41. तस्मात्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्स भरतर्षभ ।
पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम् ॥

इसलिए भरतों में श्रेष्ठ (अर्जुन), तू शुरु से ही इन्द्रियों को अपने नियन्त्रण में रख और ज्ञान और विवेक के इस पापी विनाशक को मार डाल। यहाँ ज्ञान और विज्ञान शब्दों का अभिप्राय वेदान्त के ज्ञान और सांख्य के विस्त्रृत ज्ञान से है। शंकराचार्य ने ज्ञान की व्याख्या करते हुए इसे ’शास्त्रों और गुरुओं से प्राप्त आत्मा तथा अन्य वस्तुओं का ज्ञान’ और विज्ञान को ’इस प्रकार सीखी हुई वस्तुओं का व्यक्तिगत अनुभव’ बताया है। रामानुज की दृष्टि में ज्ञान का सम्बन्ध आत्म-स्वरूप या आत्मा कीर प्रकृति से है और विज्ञान का सम्बन्ध आत्मविवेक या आत्मा के विभेदात्मक ज्ञान से है। यहाँ पर दिए गए अनुवाद में ज्ञान को आध्यात्मिक ज्ञान और विज्ञान को तार्किक ज्ञान माना गया है। श्रीधर ने इन दोनों व्याख्याओं का समर्थन किया है।[1]

42.इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः ।
मनसस्तु परा बुद्धियों बुद्धेः परतस्तु सः ॥

कहा जाता है कि इन्द्रियां बड़ी हैं; मन इन्द्रियों से भी बड़ा है; बुद्धि मन से भी बड़ी है; परन्तु बुद्धि से भी बड़ा वह है। कठोपनिषद्: 3,10; साथ ही देखिए 6,7। चेतना को एक-एक सीढ़ी करके ऊपर उठाया जाना चाहिए। ज्यों-ज्यों हम ऊपर उठते जाते हैं, त्यों-त्यों हम अधिक स्वतन्त्र होते जाते हैं। यदि हम इन्द्रियों के प्रभाव में रहकर काम करते हैं, तो हम कम स्वतंत्र होते हैं। जब हम मन के आदेशों का पालन करते हैं, तब हम अपेक्षाकृत अधिक स्वतन्त्र होते हैं; पर जब मन बुद्धि के साथ संयुक्त हो जाता है, तब हम और अधिक स्वतन्त्र होते हैं; जब हमारे कार्य परे से आने वाले प्रकाश, आत्मा से आच्छाति बुद्धि द्वारा निर्धारित होते हैं, तब हमें उच्चतम कोटि की स्वतन्त्रता प्राप्त होती है। इस श्लोक में चेतना के स्तरों का सोपानक्रम दिया गया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. . ज्ञानमात्मविषयं, विज्ञानं शास्त्रीय ’’’ यद् वा ज्ञानं शास्त्राचार्योपदेशजं, विज्ञांन निदध्यासनजम्। अमरकोश से तुलना कीजिएः मोक्षे धीः ज्ञानमन्यत्र, विज्ञानं शिल्पशास्त्रयोः ।

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भगवद्गीता -राधाकृष्णन
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
परिचय 1
1. अर्जुन की दुविधा और विषाद 63
2. सांख्य-सिद्धान्त और योग का अभ्यास 79
3. कर्मयोग या कार्य की पद्धति 107
4. ज्ञानमार्ग 124
5. सच्चा संन्यास 143
6. सच्चा योग 152
7. ईश्वर और जगत 168
8. विश्व के विकास का क्रम 176
9. भगवान अपनी सृष्टि से बड़ा है 181
10. परमात्मा सबका मूल है; उसे जान लेना सब-कुछ जान लेना है 192
11. भगवान का दिव्य रूपान्तर 200
12. व्यक्तिक भगवान की पूजा परब्रह्म की उपासना की अपेक्षा 211
13. शरीर क्षेत्र है, आत्मा क्षेत्रज्ञ है; और इन दोनों में अन्तर 215
14. सब वस्तुओं और प्राणियों का रहस्यमय जनक 222
15. जीवन का वृक्ष 227
16. दैवीय और आसुरीय मन का स्वभाव 231
17. धार्मिक तत्त्व पर लागू किए गए तीनों गुण 235
18. निष्कर्ष 239
19. अंतिम पृष्ठ 254

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