भगवद्गीता -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
आत्माअव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते । उसे अव्यक्त, चिन्तन के परे और विकार रहित कहा गया है। उसका यह रूप जानकर तुझे शोक नहीं करना चाहिये। देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत । सबके शरीर में इस प्रकार रहने वाला आत्मा नित्य और अवध्य है, इसलिये तुझे किसी प्राणी के लिये शोक नहीं करना चाहिए। यावत्संजायते किंचित्सत्त्वं स्थावरजंगमम् । जो भी चर-अचर प्राणी-जगत् उत्पन्न होता है, उसे तू आत्मा और शरीर के संयोग से उत्पन्न हुआ जान। आत्मा का निवास किस स्थान पर है? क्या वह शिर में है, हृदय प्रदेश में है या और कहीं है? आत्मा सर्वव्यापी है; उसे शरीर के किसी विशेष भाग अथवा इंद्रिय में नहीं पाया जा सकता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज