भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्रीरासलीलारहस्य
ये गोपांगनाएँ तो भगवान की अत्यन्त अन्तरंग हैं। ये भगवद्विप्रयोग के कारण चिरकाल से सन्तप्त थीं। अब उस विरहव्यथा का अन्त होने वाला था। इसी से भगवान को रमण की इच्छा हुई। अतः इसका यह भी अर्थ हो सकता है- ‘चर्षणीनां व्रजांगनाजनानां शोकापनोदनेन चर्षणीनां गतिभक्षणपराणां कर्म तत्फलभोगपरिनिष्ठानां जगतामेव शुचो मृजन् उदगात्।’ अर्थात चर्षणी यानी व्रजांगनाओं की शोक निवृत्ति करके चर्षणी-कर्म और कर्म-फल भोग में लगे हुए संसारी लोगों का शोक निवृत करते हुए चन्द्रदेव प्रकट हुए। इसी से उन्हें उडुराज अर्थात नक्षत्रमण्डल का राजा कहा है। वे परम सौभाग्यशाली और अत्यन्त पुण्यात्मा हैं, क्योंकि उनके कारण गोपांगनाओं की शोकनिवृत्ति होने से सारे संसार का ही सन्ताप शान्त हो जाता है। अतः ये उडुराज ‘उडुषु राजत इति उडुराजः’ अर्थात नक्षत्रों में अत्यन्त शोभायमान हैं। इधर जिस प्रकार जीवों की शोकनिवृत्ति करने के कारण यह उडुराज पुण्यात्मा है, उसी प्रकार मानो श्रीकृष्णचन्द्र भी उडुराज ही हैं, क्योंकि उन्होंने भी चर्षणी यानी व्रजांगनाओं का शोकापनोदन करके सारे संसार का ही शोक निवृत्त किया है। अतः ‘उडुराज’ शब्द से उनका भी अन्वादेश होता है। जैसे इस ओर ताराओं में अत्यन्त देदीप्यमान चन्द्रमा है, उसी प्रकार उधर गोपांगनाओं में नायकं-रूप से अत्यन्त देदीप्यमान भगवान श्रीकृष्ण हैं। इसी से आचार्यों ने यह भी कल्पना की है कि जिस समय भगवान ने ‘अमना’ और ‘अप्राण’ होकर भी योगमाया का आश्रय लेकर गोपांगनाओं के साथ रमण करने का संकल्प किया, उस समय उनमें मन तो था नहीं। मन का अधिष्ठाता चन्द्रमा है। जिस प्रकार सूर्य आदि अधिष्ठातादेवताओं से अधिष्ठित हुए बिना नेत्रादि में रूपादि के प्रकाशन का सामर्थ्य नहीं होता उसी प्रकार मन भी चन्द्रमा से अधिष्ठित हुए बिना संकल्प में समर्थ नहीं हो सकता था। किन्तु यहाँ भगवान के तो मन ही नहीं था; अतः वे मन के बिना रमण कैसे करते? यद्यपि अपने दिव्य ऐश्वर्य से वे बिना मन के भी रमण कर सकते थे, तथापि लोकमर्यादा का अतिलंघन न करके भगवान ने नवीन अप्राकृत मन का निर्माण किया, क्योंकि वस्तु की सरसता अथवा नीरसता का आस्वादन तो मन से ही होता है। भगवान का मन अप्राकृत था, इसलिये उसका अधिष्ठाता चन्द्रमा भी अप्राकृत ही होना चाहिये था। जिस प्रकार चन्द्रमा ताराओं के सहित शोभायमान होता है उसी प्रकार व्रजांगनाओं के मन उडु स्थानीय हैं और भगवान का मन उन उडुओं का अधिनायक चन्द्रमा है। अतः जिस प्रकार नक्षत्रों से चन्द्रमा की शोभा है उसी प्रकार गोपांगनाओं के मनों से भगवान के मन की शोभा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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