भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्रीरासलीलारहस्य
श्रीमद्भागवत में दस प्रकार से भगवान का कीर्तन किया गया है-
इसका तात्पर्य यही है कि दशम स्कन्ध में जो दशम तत्त्व का निरूपण किया गया है उसकी विशुद्धि के लिये ही उससे पूर्ववर्ती नौ स्कन्ध हैं। वह दशम तत्त्व आश्रय है। श्रीमद्भागवत में आश्रय का लक्षण इस प्रकार किया गया है-
“अध्यारोपापवादाभ्यां निष्प्रपंच प्रपंच्यते।।” अध्यारोप के द्वारा ब्रह्म को निखिल प्रपंच का चरम कारण मानकर उससे सृष्टि का क्रम बतलाया जाता है और अपवाद के द्वारा दृश्यमात्र का अनात्मत्व प्रतिपादन करते हुए साक्षी चेतन का शोधन किया जाता है। इसी क्रम से शुद्ध परब्रह्म लक्षित हो सकता है। जीव को स्वभावतः तो शुद्धतत्त्व का बोध है नहीं; अतः इस दृश्यप्रपंच के कारण के अन्वेषणपूर्वक ही उसका बोध कराया जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज