भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
व्रज-भूमि
“प्रभो! अनन्तकोटि-ब्रह्माण्ड-नायक स्वयं आप जिनके ऋणी हैं, उन घोष निवासियों की महिमा का कौन वर्णन करे। सत्यलोकाधिपति जगत्पितामह श्रीब्रह्मा जी भी व्रज के रजःस्पर्शलाभार्थ व्रजवृन्दाटवी के तृण-गुल्मादि के रूप में जन्म लेने के सौभाग्य की अभिलाषा रखते हैं। उनको आशा है कि यहाँ के तृण-गुल्मादि होने से भी व्रजवासियों के चरण रज का अभिषेक उन्हें प्राप्त होगा। उस व्रज के अन्तर्गत भगवान की अनेक लीला-भूमि हैं, जो साक्षात् श्रीकृष्णचन्द्र-विषयिणी प्रीति का उद्दीपन करने वाली हैं। यमुना-पुलिन, गोवर्धनाद्रि, गह्वरवन, कदम्बखण्डियाँ, नन्दग्राम, बरसाना, उद्धवक्यार, चरणाद्रि आदि ऐसे-ऐसे मनोहर स्थान हैं जहाँ के परमाणु-परमाणु में श्रीकृष्ण-प्रीति का संचार करने की अद्भुत शक्ति देखी जाती है। व्रज्र-सदृश कठोर चित्त भी वहाँ हठात् द्रवीभूत हो जाता है।” श्रीवृन्दावन-धाम तो व्रजभूमि का सर्वस्व है। श्रीव्रजभक्तों की पद-पंकज-रज के संस्पर्श-लोभ से, “नोद्धवोऽण्वपि मन्न्यूनः” के अनुसार, साक्षात श्रीकृष्ण से भी अन्यून महाभागवत उद्धव भी वृन्दावन धाम के तृण-गुल्मादि होने की स्पृहा प्रकट करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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