भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
चीरहरण
अत: जैसे सर्वभुक् अग्नि के समान कोई सर्वभक्षी नहीं हो सकता, रुद्र के समान कालकूटभोजी नहीं हो सकता, कृष्ण के समान गोवर्धन नहीं उठा सकता, वैसे ही चीरहरण? रासलीला का भी आचरण कोई नहीं कर सकता। यदि मूढ़ता से कोई करेगा तो अवश्य ही उसका सर्वनाश हो जायगा। शास्त्रविरुद्ध श्रेष्ठों के आचरणों का अनुकरण कदापि न करना चाहिये। अत: श्रुति ने कहा है, “यानि मेऽनवद्यानि तानि त्वयोपास्यानि, नो इतराणि।” वही कार्य किसी के लिये अदोषावह होता है, किसी के लिये शास्त्रविरुद्ध एवं सावद्य होता है। ऋषभदेव के लये अवधूतचर्या ठीक ही है, परन्तु औरों के लिये वही अनुचित है। वैसे ही कृष्णलीला कृष्ण ही के लिये है, दूसरों के लिये नहीं। दूसरे तो यही शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं कि ओह! श्रीकृष्ण ऐसो परम सुन्दरी स्वाधीन नग्न व्रजबालाओं के दर्शन से निर्विकार एवं अक्षुब्ध मनस्क रहे, ऐसे ही दृढ़ ब्रह्मचर्य और मन की स्थिरता और एकाग्रता बनानी चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज