भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
चीरहरण
अतएव, भावुकों का कहना है कि यह उन व्रजकुमारिकाओं की विशेषता है। भगवान ने अपने अद्भुत माधुर्यादि लोकोत्तर चमत्कार से समग्र ज्ञान-वैराग्यवान सनकादि, शुकादि मुनीन्द्रों के मन को खींच लिया है। अतएव अत्यन्त निःस्पृहनिष्काम होने पर भी भगवान में उन सबका आकर्षण हुआ, परन्तु ये व्रजांगनाएँ भगवान से भी अधिक गुणवती हैं, अतः अपने लोकोत्तर प्रेम से समस्त ज्ञान-वैराग्यवान के मन को भी खींच लिया। इसीलिये कहा है कि समस्त जीव तो भगवान के साथ रमण करने के लिए सदा लालायित रहते ही हैं, किन्तु अहोभाग्य उन लोगों का है कि जिनके साथ रमण करने के लिये भगवान उत्सुक हैं। यह केवल विशुद्ध प्रेम की ही महिमा है कि उनके कर्म सिद्ध करने के लिये वयस्यों से समावृत भगवान पधारे। बड़ी शीघ्रता से उनके वस्त्रों को लेकर कदम्ब पर चढ़ गये, और हँसते हुए बालकों के साथ उनसे इस तरह परिहास करने लगे- “क्यों शीतल जल में कम्पित हो रही हो? निकलकर शुष्क वस्त्र धारण करो, अथवा हे व्रज-बालिकाओं! इस कदम्ब की शाखा में इतने वस्त्रों को किसने लाकर बाँधा है? क्या आप सब जानती हैं? मैं तो गौ चराते हुए दूर से यह देखकर कि मेरे कदम्ब में आज विचित्र वस्त्रों के ही फल-फूल लगे हैं, अभी इस पर चढ़ा हूँ। यदि आप लोग यह कहें कि यह हमारे वस्त्र हैं, तो यह तो सम्भव नहीं। तुम्हारे वस्त्र इतने ऊँचे कैसे चढ़ सकते थे? यदि कहो कि तुम्हीं ने चुराकर इतने ऊँचे रख दिया है तो ठीक है। क्या यह भी कहने का साहस करोगी? क्या नन्दराय का पुत्र मैं चोर हूँ? क्या तुम लोग मथुरास्थ कंस के पास जाना चाहती हो? यदि कहो कि वस्त्र ही देखो-पहचानो, यह पुरुष के वस्त्र हैं या स्त्री के हैं? परन्तु क्या इस संसार में तुम्हीं स्त्री हो, और कोई स्त्री नहीं है? यदि कहो कि यह ठीक है, परन्तु इस निर्जन वन में हम व्रजबालाओं को छोड़कर और कौन स्त्री आ सकती है? अये! रहःसंचारिणी ब्रजबालाओं! क्या आप ही लोग रहस्य क्रीड़ा करती हैं? यदि कहो कि अन्यथा विद्वान! हम लोग यहाँ खेलने नहीं आतीं, किन्तु कदम्ब देवता श्रीदुर्गा की पूजा करने आती हैं, तो भी क्या तुम्हीं दुर्गा की पूजा करती हो? अये मुग्धाओं! यहाँ तो प्रत्येक अर्धरात्र में वैमानिकी देवियाँ आकर दुर्गा की पूजा करती हैं। यदि कहो कि ठीक है, परन्तु वे वस्त्र छोड़कर क्यों जातीं? परन्तु बालाओं, तुम इस तत्त्व को नहीं जानतीं। आज पुनः पूजा के लिये वे वस्त्र छोड़ गयी हैं।” |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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