भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
चीरहरण
माधुर्यानुभव काल में ऐश्वर्य का अनुभव होने पर आश्चर्य होता है। अहो! प्रेम से ही व्रजांगनाओं ने भगवान! को वश कर लिया, जिसे कि ब्रह्मा आदि ने पा सके, परन्तु अपनी स्वाभाविकी दृष्टि से व्रजांगना केवल शुद्ध-माधुर्य का ही आदर करती थीं। यह कात्यायिनी अर्चन व्रज शुद्ध मधुर प्रेम का ही विलास है। अतएव वे उनसे “भगवान पति दो” ऐसा न कहकर नन्दगोपराजकुमार पति माँगती हैं। ऋषिरूप होने के कारण उन्हें इस मंत्र का प्रत्यक्ष हुआ, यहाँ कात्यायिनी आधिदैविकी संहारिणी शक्ति हैं। अतः भगवान की अप्राप्ति के हेतुभूत -- को वही दूर कर सकती हैं। भगवत्प्राप्ति प्रतिबन्धक दुरदृष्ट मिटाने का साधन तप भी है, परन्तु वह तो ऋषिरूपा कुमारिकाओं में पहले से ही सिद्ध हैं। अतः आधिदैविक प्रतिबन्धक मिटाने के लिये आधिदैविकी महाशक्ति कात्यायिनी ही समर्थ हैं। कहा जा सकता है कि यदि आधिदैविक प्रतिबन्धक हैं, तब तो वह भगवान की इच्छा से ही होगा, फिर इसकी निवृत्ति कैसे होगी? परन्तु वह महाशक्ति महाभागा है। अल्प-भागा होने से उन्हें भगवान की आज्ञा न होती, श्रीयशोदा के यहाँ जन्म न होता। अतः महाभागा भगवती कात्यायिनी की प्रार्थना से प्रभु अपनी इच्छा को भी भगवती की इच्छानुगुण कर देंगे। हे देवि! आप प्रभु की ज्येष्ठा भगिनी हैं। सब तरह से आप हमारे मनोरथ को पूरा कर सकती हैं। यदि आप यह कहें कि यह प्रतिबन्ध हमसे नहीं दूर हो सकता, तो ठीक नहीं। क्योंकि आप महायोगिनी हैं। यदि आप देवकी के उदर में बलराम को रोहिणी के उदर में पहुँचा सकती हैं, तो मेरे भगवत्प्राप्ति प्रतिबन्धक आधिदैविक दुरदृष्ट को क्यों नहीं मिटा सकतीं? यदि कहें कि यह आधिदैविकी प्रतिबन्धक शक्ति अत्यन्त बलवती है, तो भी देवि! आप अधीश्वरी हैं। भगवान की आप अन्तरंग शक्ति हैं। सर्वप्रकार से आप व्रजराजकुमार को हमारा पति बना सकती हैं। यदि यह कहो कि भगवान किसी के पति नहीं हो सकते, तो यह भी ठीक नहीं, क्योंकि जब श्रीव्रजराज के कुमार हो गये, तो हमारे पति बनने में क्या आपत्ति है? फिर आप देवी हो, किसी अलौकिक रीति से भी आप यह कार्य कर सकती हो। हम इसके बदले में आपको केवल नमन कर सकती हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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