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भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्री रासपञ्चाध्यायी
पूर्वोक्त ‘चूतप्रियालपनसासन’[1] इस पद्य में आम के ‘चूत’ और ‘आम्र’ ये दो नाम आये हैं। इस द्विरुक्ति के टीकाकारों ने विभिन्न अर्थ किये हैं। अम्ल (खट्टे) रस वाले आम को ‘चूत’ और मधुर रस वाले आम को ‘आम्र’ कहते हैं। इस तरह रस भेद से दो नाम, दो भेद हैं। अथवा ‘करुणया च्यवते इति चूतः’ करुणा से जो दीनों पर द्रुत हो, उसे ‘चूत’ कहते हैं। अन्यत्र के आमों में चाहे यह बात न हो, पर श्रीवृन्दावन धाम के आमों में तो यह विशेषता है ही। ये श्रीश्यामसुन्दर के यहाँ अन्तरंग हैं अथवा परिकरों में कोई हैं। मुनिजन भी यहाँ की वृक्षता चाहते हैं। श्रीव्रजांगनाएँ कहती हैं- “वैसे हे आम्रवृक्षो! आप लोग दुःखियों का दुःख देखकर द्रुत होते हैं। दूसरो में दया नहीं, अतः वे द्रुत नहीं होते। हमसे बढ़कर दूसरा दुखिया और कौन होगा? हम पर दया करो। आम का भव-जन्म परोपकार के लिये है। फल, पुष्प, पत्र और काष्ठ आदि आपकी सभी वस्तुएँ केवल परोपकार के लिये हैं। आपका निवास साक्षात् प्रेमद्रववती श्रीयमुना के तट पर है। श्रीयमुना जल की तरह ही मान सरोवर, कृष्ण सरोवर आदि भी व्रज के तीर्थ अनुराग द्रव हैं। इन श्रीयमुना जल आदि के दर्शन, स्पर्श, पान आदि से दूसरों को भी श्रीकृष्ण विषयक ज्ञान देने के कारण आपका नाम ‘चिति संज्ञाने’ से चेतति ‘अन्यांश्चेतयतीति वा चूतः’ हुआ है। इतनी ऊँची आप लोगों की योग्यता है। आप हम दुःखियों को भी श्री श्यामसुन्दर का पता देकर कृतार्थ करो।” जब इतनी स्तुति करने पर भी आम्र वृक्षों ने कुछ उत्तर नहीं दिया, तब गोपांगनाएँ बड़ी खिन्न हुईं। असूया से अब उनके प्रति दोषों का अनुसन्धान हुआ - (च्योतति, प्रच्युतयति इति चूतः) “सखि! ये तो थे परोपकार, पवित्र तीर्थ वासी ही, परन्तु अब स्वरूप से प्रच्युत हो जाने के कारण निष्ठुर हो गये हैं। ‘यमुनोपकूलाः’ ये यमुना के किनारे रहते हैं। यमुना यमराज की बहन है, यम सर्व दुःखदायी हैं। “संसर्गजा दोषगुणा भवन्ति” उसी यम सम्पर्क से ये अब निर्दय हो गये हैं। हमारे तीव्र ताप से इन्हें प्रसन्नता हो रही है।” |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (भाग. 10।30।9)
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