भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
इष्टदेव की उपासना
अर्थात ‘‘हे ध्रुव! तुम महामति हो। सावधान होकर सूनो। मैं तुम्हारे हित की बात कहता हूँ, जिससे तुम्हारा स्थान अत्यन्त अचल हो जायगा। मौक्षदाता साक्षात भगवान श्रीविश्वनाथ जी जहाँ निवास करते हैं, उस परम पवित्र काशीपुरी को मैं जाना चाहता हूँ। जिस काशी में स्वयं श्रीविश्वेश्वर भगवान मृत प्राणियों के कान में उस मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे उन प्राणियों के समस्त कर्म नष्ट हो जाते हैं। सभी तरह के उपद्रवों को देने वाले इस तुच्छ संसाररूपी दुःख को दूर करने का यह आनन्द-भूति काशी ही एकमात्र उपाय है। दुःखरूपी महान वृक्ष का बीज विषयों में समीचीनता-असमीचीनता-बुद्धि है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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