भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्रीरासलीलारहस्य
अतः यदि तुम वास्तव में अपना कल्याण चाहते हो तो विषयों को त्यागो। रसना को रसास्वादन से रोको, श्रोत्रों से शब्द ग्रहण मत करो और घ्राणेन्द्रिय से गन्ध मत सूँघो। सारी इन्द्रियों का निरोध कर दो।
आत्मलाभ का यही उपाय है। इसी से भगवान ने कहा है-
पहले अपनी इन्द्रियों की प्रवृत्ति को शास्त्रीय करो। इससे उनकी उच्छृंखलता शान्त हो जायगी। फिर धीरे-धीरे अभ्यास द्वारा उनसे विषय ग्रहण करना छोड़ दो। श्रीमधुसूदन सरस्वती ने अपनी गीता की टीका में कहा है- ‘यदि घर में चोर घुस रहे हों तो सबसे पहले दरवाजा बन्द कर लेना चाहिये; पीछे कोई और उपाय करो। इसी प्रकार विषयों पर विजय प्राप्त करने के लिये पहले इन्द्रियों को उनके विषयों से निवृत्त करो। यदि अन्तःकरण में भोगवासना बनी हुई हो तो भी इन्द्रियों से अन्य विषयों को तो ग्रहण मत करो। अब जो विषय रूप चोर तुम्हारे अन्तःकरण रूप घर में घुस आये हैं उनकी परब्रह्म रूप राजा के यहाँ रिपोर्ट करो, वह अवश्य इनका प्रबन्ध कर देंगे। श्रीगोसाईं जी महाराज कहते हैं-
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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